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________________ २९८ सूत्रकृताङ्गसून अन्वयार्थ - (ते) ते - पूर्वोक्ताः प्रत्यक्षज्ञानिनः (दुगु छमाणा) जुगुप्समानाः पाप कर्म निन्दन्तः सन्तः (भूया हिसकाइ ) भूताभिशङ्कया - प्राण्युपमर्दनशङ्कया (णेव ) नैव (कुव्वंति) कुर्वन्ति न स्वयं पापकर्म समाचरन्ति तथा - (ण कारवंति) न पापाचरणे परं प्रेरयन्ति, उपलक्षणात् पापं कुर्वन्तमन्यं नानुमोदयन्ति च, किन्तु ते ( धीरा) धीराः - परीषहोपसर्ग सहनशीलाः (सया) सदा - निरन्तरमहर्निशम् (जया) शब्दार्थ - 'ते - ते' वे पूर्वोक्त प्रत्यक्ष ज्ञानी अर्थात् तीर्थकरादि 'दुर्गछमाणा - जुगुप्समानाः पापकर्म से घृणा करते हुए 'भूताहिसंकाइभूताभिशङ्कया' प्राणियों के घातके भय से 'नेव कुव्यंति - नैव कुर्वन्ति' स्वयं पाप नहीं करते हैं तथा 'ण कारवंति - न कारयन्ति' पापाचरण करने के लिए अन्य को प्रेरित नहीं करते हैं 'धीरा - धीराः ' परीषह एवं उपसर्ग को सहन करनेवाले वे पुरुष 'सया-सदा' सर्व काल 'जया - यताः' यतना युक्त होकर 'विषणमंति- विप्रणमन्ति' संयम का अनुष्ठान करते हैं 'य-च' तथा 'एगे - एके' कोइ अल्पसत्व 'विष्णत्ति धीरा - विज्ञ. तिधीराः संयम के ज्ञान मात्र से संतुष्ठ 'हवंति - भवन्ति' होते हैं अर्थात् क्रियासे संयमका अनुष्ठान नहीं करते हैं ॥१७॥ अभ्वपार्थ- वे पूर्वोक्त प्रत्यक्षज्ञानी पापकर्म की जुगुप्सा करते हुए, प्राणियों के उपमर्दन (विराधना) की संभावना से न स्वयं पापकर्म करते हैं न करवाते हैं और न पापकर्म करनेवाले का अनुमोदन करते हैं। वे - शब्दार्थ - 'ते - ते' मे पडेला वर्षावेस प्रत्यक्ष ज्ञानी अर्थात् तीर्थ :शहि 'दुःखमाणा - जुगुप्तमानाः' पानी वृथा ४२ता था 'भूताहिसकाइ -भूताभिशङ्कया' आशियाना धातना अयथी 'नैव कुव्वति नैव कुर्वन्ति' पोते पायर्भरता नथी तथा 'न कारवति न कारयन्ति' पाय मारवा भाटे मीलने प्रेरणा पुरता नथी. 'धीरा - धीराः' परीषड भने उपसर्गने सहन उरवावाजा शेषा ते पु३ष 'सया - सदा' सर्वाण 'जया - यता ः ' यतनावाजा पनीने 'विषणमंति- विप्रणमन्ति' सत्यमनु अनुष्ठान उरे छे. 'य-च' भने 'एगे - एके' अ महय सत्व 'विष्णत्तिधीरा- विज्ञप्तिधीराः ' संयमना ज्ञान भात्री स ंतोषी 'हव'ति - भवन्ति' थाय छे. अर्थात् हियापूर्व અનુષ્ઠાન કરતા નથી. ।।૧ળા संयमनु અન્વયા”— પૂર્વોક્ત પ્રત્યક્ષ જ્ઞાનીચેા પાપકની નિ ંદા કરતા થકા પ્રાણિયાના ઉપમન (વિરાધના) ની સ'ભાવનાથી પાતે પાપ કમ કરતા નથી તેમજ બીજા પાંસે પાપકર્મ કરાવતા નથી તથા પાપ કર્મ કરવાવાળાની અનુ श्री सूत्र तांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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