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________________ २८० सूत्रकृताङ्गसूत्रे नहि विद्यामधीयाना विद्यात्यागमिच्छन्ति न चोपदिशन्ति वाऽन्येषां कृते । अतो ज्ञानक्रियेति द्वयमेव मोक्षहेतुरिति भावः ॥१०॥ एवं तर्कबलेनाऽक्रियाऽक्रियावादिमतं निराकृत्य सम्पति-क्रियावादिमतप्रदर्शनपूर्वकं तन्मतं निराकरोति सूत्रकार:-'ते एवमक्खंति' इत्यादि । मूलम्-ते एव मक्खंति समिच्च लोग, तहा तहा समणा माहणा य । संयं कडं णनकडं च दुक्खं, आहंसु विजाचरणं पैमोक्खं ॥११॥ छाया-त एव माख्यान्ति समेत्य लोकं, तथा तथा श्रमणा माहनाश्च । स्वयं कृतं नान्यकृतं च दुःखम्, आहुश्च विद्याचरणं प्रमोक्षम् ॥११॥ स्याग नहीं कर देते और न दूसरों को विद्या के त्याग का उपदेश करते हैं । अतएव तात्पर्य यह है कि ज्ञान और क्रिया दोनों ही मोक्ष के मार्ग हैं।॥१०॥ इस प्रकार तर्क के बल से अक्रियावादियों के मत का निराकरण करके अब क्रियावादियों के मत को दिखला कर सूत्रकार उसका निराकरण करते हैं-'ते एवमक्खंति इत्यादि । शब्दार्थ-'ते-ते' वे 'समणा-श्रमणाः' श्रमण अर्थात् शाक्यादि, भिक्षु 'य-च' तथा 'माहणा-माहना' माहन अर्थात् ब्राह्मण 'एवं-एवम्' पूर्वोक्त प्रकार से 'अक्खंति-आख्यान्ति' प्रतिपादनकरते हैं वे क्या प्रतिपादन करते है ? इसके लिये सूत्रकार कहते है-'लोगं-लोकम् २ કરી દેતા નથી. તેમજ બીજાઓને વિદ્યાના ત્યાગને ઉપદેશ પણ આપતા નથી, તેથીજ કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે-જ્ઞાન અને ક્રિયા અને મોક્ષના માર્ગ છે. ૧૦ આ પ્રમાણે તર્કના બળથી અકિયાવાદિના મતનું ખંડન કરીને હવે हियावाहियाना भतने मतावान सूत्र तेनु नि२४४२९५ ४२ छे. 'ते एवमखति' त्यादि शहाथ-'ते-ते' से 'समणा-श्रमणाः' श्रम अर्थात् शाहिमिक्षु 'य-च' तथा 'माहणा-माहना' माईन अर्थात् प्राझए 'एवं-एवम् पूर्वात प्रसारथी 'अक्खति-आख्याति' प्रतिपादन ४२ छे. तमाशु प्रतिपान ४रे से मतपत सूत्रा२ ४३ छ -'लोग-लोकम्' स्था१२ भने मात्र શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૩
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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