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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम् २५९ सर्वन्यापकोऽतएव तेऽपि-प्रक्रियावादिनः सांख्यकाराः। तदेवं चार्वाकबौद्धसांख्यकाराः अक्रियावादिनः अनुपसंख्यया-अज्ञानेन एतत्पूर्वोक्तं कययन्तीति ।। मूलम्-सम्मिस्सभावं च गिरा गहीए, से मुम्मुई होइ अणाणुवाई। इमं दुपक्खं इम मेगैपक्खं, आहंसु छैलायतणं च कम्मं ॥५॥ छाया--'संमिश्रभावं च गिरा गृहीते, स मूकमूको भवत्यननुवादी । इदं द्विपक्षमिदमेकपक्ष, माहुश्छलायतनं च कर्म ॥५॥ करते। जब वर्तमान क्षण का अतीत अनागत क्षणों के साथ कोई संबंध ही नहीं है तो क्रिया और क्रिया जनित बंध भी सिद्ध नहीं हो सकता। इसी कारण ये क्रिया का निषेध करते हैं। ___ इनके अतिरिक्त जिनके मत में आत्मा व्यापक है और इस कारण निष्क्रिय है, वे भी अक्रियावादी हैं। ऐसे अक्कियावादी सांख्य हैं। इस प्रकार चार्वाक, बौद्ध और सांख्य ये सभी अक्रियावादी अज्ञान के कारण पूर्वोक्त कथन करते हैं ॥४॥ 'सम्मिस्सभावं च' इत्यादि। शब्दार्थ-वे पूर्वोक्त लोकायतिकादि 'गिरा-गिरा' अपनी वाणीसे 'गहीए-गृहीते' स्वीकार किये हुए पदार्थ का निषेध करते हुए लोकाय. જ્યારે વર્તમાન ક્ષણને અતીત અનાગત ક્ષણની સાથે કોઈ સંબન્ધજ નથી. તે ક્રિયા અને ક્રિયાથી થવાવાળે બંધ પણ સિદ્ધ થઈ શકતું નથી. એજ કારણથી તેઓ ક્રિયાને નિષેધ કરે છે. આ સિવાય જેઓના મતમાં આત્મા વ્યાપક છે, અને તે કારણથી તે નિકિય છે, તેઓ પણ અક્રિયાવાદી જ છે. એવા અકિયાવાદી સાંખે છે. આ રીતે ચાર્વાક, બૌદ્ધ, અને સાંખ્ય એ બધા અકિયાવાદી અજ્ઞાનના કારણે પૂર્વોક્ત કથન કરતા રહે છે. કા. 'सम्मिरसभाव' त्या Avail-५२ पडेस वामां मावेस सोडायतिव्यो 'गिरा-गिरा' पोताना १eluी 'गहीए-गृहीते' स्वी।२ ४२पामा मापस पानी निषेध श्रीसूत्रकृतांगसूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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