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________________ २१४ सूत्रकृताङ्गसूत्रे 'एवमप्पा सुरक्खियो होइ' एवमात्मा सुरक्षितो भवति - एवम् अनेन स्त्रीसम्बन्धेन विरहित आत्मा सर्वेभ्योऽपायस्थानेभ्यः सुरक्षितो भवति । यतः सर्वेषां पापानां स्थानम् वनिता । अतः स्वहितमिच्छता नरेण आसां संबन्धो दूरादेव त्याज्यो विष. संबन्धवत् इति ५ ॥ ॥ ॥ मूलम् - आमंतिय उस्सविया भिक्खु आयसा निमंतंति । एयाणि चेव से जीणे सद्दाणि विरूवरुवाणि ॥ ६ ॥ छाया -- आमन्त्र्य उच्छ्राय्य भिक्षुमात्मना निमन्त्रयन्ति । aisचैव स जानीयात् शब्दान् विरूपरूपान् ||६|| इस प्रकार जो आत्मा स्त्री के सम्पर्क से बचा रहता है, वही सब बुराइयों से बचा रहता है क्योंकि स्त्री समस्त पापों का स्थान है। अतएव अपना हित चाहने वाले पुरुष को इनका सम्बन्ध, विष सम्बन्ध की भांति दूर से ही त्याग देना चाहिए ॥५॥ शब्दार्थ - 'आमंतिय आमन्त्रय' स्त्रियां साधुको संकेत देकर अर्थात् मैं आपके पास अमुक समय आउंगी इत्यादि प्रकार से आमंत्रण देकर 'उस्सविया - उच्छ्राय्य' और अनेक प्रकार के वार्तालाप से विश्वास देकर 'भिक्खु - भिक्षुम्' साधुको 'आयसा - आत्मना' अपने साथ भोग भोगने के लिये 'निमंतति- निमंत्रयन्ति' प्रार्थना करते हैं अतः 'से-सः' वह साधु 'एयाणि सदाणि एतान् शब्दान्' स्त्री संबन्धी इन शब्दों को 'विरूवरुवाणि - विरूपरूपान' अनेक प्रकार के पाशबन्धन के सामान 'जाणे - जानीयात् ' समजे ||६|| આ પ્રકારે જે આત્મા સ્ત્રીના સ`પર્કથી ખચી શકે છે, એજ આત્મા બધા ઢોષોથી મુક્ત રહી શકે છે, કારણ કે સ્ત્રી સમસ્ત પાપાનું સ્થાન છે. તેથી આત્મકલ્યાણુ ચાહતા પુરુષોએ સ્ત્રીના સમાગમને વિષ સમાન ગણીને તેનાથી દૂર જ રહેવુ' જોઈ એ. પા शब्दार्थ`– 'आमंतिय-आमन्त्र्य' स्त्रियो साधुने सर्खेत पुरीने अर्थात् हु આપની પાસે અમુક સમયે આવીશ વિગેરે પ્રકારથી આમત્રણ આપીને ઉન્નविया - उच्छ्राय्य' भन्न भने प्रहारना वार्तासाथी विश्वास उपन्लवीने भिक्खु - भिक्षुम्' साधुने 'आयसा - आत्मना ' पोतानी साथै लोग लोगववा भाटे 'निमंतंति-निमन्त्रयन्ति' आर्थना रे . ' से - सः' ते साधु 'एयाणि सदाणिएतान् शब्दान्' स्त्री संबंधी या शब्होने 'विरूवरुवाणि - विरूपरूपान्' भने अहारना पाश संघननी प्रेम 'जाणे - जानीयात् ' सभ ॥६॥ શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર :૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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