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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ४ उ.१ स्त्रीपरीषहनिरूपणम् २१ मूलम्-नो तासु चंखु संधेजो नोवि य साहसं समभिजाणे।
णो सहियवि विहरेजा एवमैप्पा सुरक्खिओ होई ॥५॥ छाया--न तासु चक्षुः संदध्यात् नापि च साहसं समभिजानीयात् ।
न सहितोपि विहरेत् एवमात्मा सुरक्षितो भवति ॥५॥ अन्वयार्थः-(तासु तासु स्त्रीषु (चक्खू) चक्षुर्नेत्र (नो) न (संधेज्जा) संदध्यात्न संयोजयेत् (नोवि य) नापि च (साहसं समभिजाणे) साहसं सममिजानीयात्-साहसमकार्यकरणं तत्मार्थनया प्रतिपधेत नैव (सहियं वि) सहितोपि. तया (णो विहरेज्जा) नो विहरेत्यामानामान्तरम् (एवं) एवमुपरोक्तप्रकारेण (अप्पा) आत्मा-स्वकीयः (सुरक्खियो होइ) सुरक्षितो भवति-असंयमेभ्य इति ॥५॥ पुरुष को चूस लेती हैं। अतएव जो अपना हित चाहता है उसे दूर से ही स्त्रियों का त्याग कर देना उचित है ॥४॥
शब्दार्थ-'तासु-तास्लु' उन स्त्रियों पर 'चक्खू-चक्षुः' आंख 'वोसंधेजा-न संध्यात्' न लगावे 'नो वि य-नापि च' तथा उनके साथ 'माहसं समभिजाणे-साहसं समभिजानीयात्' कुकर्म करने के लिये भी संमति न देखें 'सहियं वि-सहितोऽपि उनके साथ 'णो विहरेज्जा-जो विहरेत्' ग्राम आदि जाने के लिये विहार न करे 'एवं-एवम्' इस प्रकार 'अप्पा-आत्मा' साधु का आत्मा 'सुरक्खियो होह-सुरक्षितो भवति' असंयम से सुरक्षित रहता है । ५॥ ___ अन्वयार्थ साधु स्त्रियों पर दृष्टि न डाले या उनके नेत्र से अपने नेत्र न मिलावें न उसके कहने पर कोई अकार्य करे न उसके साथ विहार करे । इसी प्रकार से आत्मा सुरक्षित होता है ॥५॥ દ્વારા પુરૂષને પિતાના પાશમાં ફસાવીને અનુરક્ત બનેલા તે પુરૂષને ચૂસી લે છે–તેના શીલનું ખલન કરાવે છે. તેથી જે કઈ પુરૂષ પિતાનું હિત ચાહત હોય તેણે સ્ત્રીઓથી દૂર જ રહેવું જોઈએ. ઝા
शहाथ-'तासु-तासु' से सिय ५२ 'चक्खू-चक्षुः' मा 'नो संघज्जा -न संध्यात्' भावनली 'नो वियना पिच' तथा तशीनी साथे 'साहस सम भिजाणे-साहसं समभिजानीयात्' म ४२वानी संमती ५ । माथे 'सहिये वि-सहितोऽपि' तीन साथे ‘णो विहरेज्जा-नो विहरेत्' भाम विर सपा भाट विहार न ४२३1. 'एव-एवम' मारीत 'अप्पा-आत्मा' साधुन मारमा 'सुरक्खियो होई-सुरक्षितो भवति' मसयमयी सुरक्षित २९ छे. ॥५॥
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૨