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________________ ८९४ आचारांगसूत्रे वा-मृदङ्गनामकवायविशेषशब्दान्, नन्दीशब्दान् वा-नन्दीनामकवाद्यविशेषशब्दान्, झल्लरीशब्दान वा-झल्लरीनामक (झाल) वाधविशेषशब्दान् 'अन्नयराणि वा तहप्पगाराणि' अन्यतरान् वा-तदन्यान् वा तथाप्रकारान्-मृदङ्गप्रभृतिशब्दान् ‘विरूवरूवाई सद्दाई' विरूपरूपान् नानाविधान् शब्दान् वितताई' विततान् -विततशब्दव्यपदेश्यान् ‘कन्नसोयणपडियाए' कर्णश्रवणप्रतिज्ञया-कर्णेन श्रोतुमिच्छया 'नो अभिसंधारिजा गमणाए' नो अभिसंधारयेत्मनसि विचारयेत् गमनाय-गन्तुम्, मृदङ्गादिशब्दान् श्रोतुं न गच्छेदित्यर्थः एतावता वितततत-घन-शुषिररूपचतुर्विधातोधशब्दान् यदि शणुयात्तर्हि तदाकर्णनाय गमनं न कुर्यादित्यभिप्रायेण प्रथमं विततशब्दमुक्त्वा क्रमशः ततादिशब्दान् प्ररूपयन् निषेधति 'से भिक्खूवा मिक्खुगी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'आहावेगइयाई सद्दाइं सुणेई' यथा वा एककान्वक्ष्यमाणस्वरूपान् शब्दान् शृणोति 'तं जहा वीणासदाणि वा' तद्यथा-वीणाशब्दान् वा 'विपंचीसदाणि वा' विपश्चीशब्दान् वा-विपश्चीनामातोद्य विशेषशब्दान् 'पिप्पी (बद्धी) सगसदाणि वा' पिप्पीसक (पिपही) शब्दान् वा 'तूणयसदाणि वा' तूणक शब्दान् वा-तन्त्री तरह के दूसरे भी पखाउज झालरमृदङ्ग वगैरह के शब्दों को या 'विरूवरूवाई सहाई' नानाप्रकारके शब्दों को एवं 'वितताई कण्णसोयणपडियाए' विततनाम के शब्द विशेषों को कान से सुनने की इच्छा से 'नो अभिसंधारिजा' कहीं भी दूसरे स्थान में नहीं जाय, अर्थात् मृदङ्गादि शब्दों को सुनने के लिये कहीं भी नहीं जाय एतावता वितत-तत-घन और शुषिररूप चार प्रकार के आतोद्य वाद्यविशेषशब्दों को यदि सुने तो उन आतोद्य शब्दों को सुनने के लिये जैन साधु मुनिमहात्मा कहीं भी दूसरे स्थान नहीं जाय, इस प्रकार सब से पहले वितत शब्दों का निरूपण करके अब क्रम से तत-घनशुषिर के शब्दों का निरूपण करने के लिये कहते हैं-'से भिख्खू वा, भिश्वुणी वा, अहावेगइयाइं सहाई सुणेइ' वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु मुनि महात्मा और भिक्षुकी-साधी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप के शब्दों को सुन ले 'तं जहा' जैसे कि 'वीणासदाणि वा' वीणा के शब्दों को या 'विपंचीसहाणि वा' विपश्चीनाम के आतोद्यविशेष के शब्दों को या 'पिप्पीसगसहाणि वा' पिपहीमाताध पाn विशेषना शहाने ने सोमणे तो 'कण्णसोयणपडियाए नो अभिसंधारिज्जा गमणाए' से प्रिय माताध शहने साना भाटे साधुणे ४ ५ पी० स्थानमा જવું નહીં. આ પ્રમાણે સૌથી પહેલાં વિતત શબ્દનું નિરૂપણ કરીને હવે ક્રમથી તતधन भने सुषिरना होनु नि३५४४ ४२१। माट सूत्र५।२ ४ छे. 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' त पूर्वात सयभशा साधु सने सो 'अहावेगइयाई सद्दाई सुणेई' ने पदयमा) शतना होने सामने 'तं जहा' २१। 3-'वीणास दाणी वा' वान शहीर अथवा 'विपचीसदाणि वा' विषयी नामना आता विशेषता शहाने अथवा 'पिप्पीसगसदाणि वा' पारी १२ नामना माताध विशेष नाशा या 'तृणयसबाणी वा' तूप श्री माया सूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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