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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ स्. २ अ. १० उच्चारप्रस्रवणविधेनिरूपणम् ८७९ पुत्ता वा' इह खलु-स्थण्डिले गृहपतिर्वा गृहपतिपुत्रा वा 'सालीणि वा वीहीणि वा शालीन वा-कलमतण्डुलान् ब्रीहीन् वा-यव धान्यानि 'मुग्गाणि वा मासाणि वा' मुगान् वा माषान् वा 'कुलस्थाणि वा जवाणि वा जवजवाणि वा' कुलत्थान वा (कुलथी) यवान् वा-दीर्घशुकयुक्त गोधूमविशेषान, यवयवान् वा-दुष्टयवान् (जौ) 'पइरिसु वा पइरिति वा पइरिस्संति वा' पर्याप्सुर्वा-उप्तवन्तः, परिवपन्ति वा परिवप्स्यन्ति वा 'अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि यंडिलंसि' अन्यतरस्मिन् वा-अन्यस्मिन् वा तथाप्रकारे-शालिप्रभृतिपरिवापसहिते स्थण्डिले 'नो उच्चारपासवणं वो सिरिज्जा' नो उच्चारप्रस्रवणम्-मलमूत्रपरित्यागं व्युत्सृजेत्-कुर्यात् वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशोल मुनि महात्मा और भिक्षुकी साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से स्थण्डिल को जानले कि 'इह खलु गाहावइ वा गाहावई पुत्ता वा' इस स्थण्डिल में गृहपति-गृहस्थ श्रावक ओर गृहपति का पुत्र 'सालीणि वा वीहीणि वा' शाली-कलम-चावलो को या वीही धान्यों को या 'मुग्गाणि या मासाणि वा मुंगों को अर्थात् मग को या माों को अर्थात् उरदों को या 'कुल. स्थाणि वा' कुलत्थो को या 'जवाणि वा जवजवाणि वा' ययों या गोधूमों को या जवजवों (जौ) को 'परिंसु वा पइरिति वा' पहले भी बोते थे और अभी भी बोते हैं-और 'पइरिस्संति वा आगे भी भविष्य काल में बोएंगे या बोने वाले है ऐसा जान ले या देख ले तो 'अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि' इस प्रकार के बोए जानेवाली शाली वगैरह से संबद्ध स्थण्डिल में साधु को 'नो उच्चापासवणं वोसिरिज्जा' मलमूत्र का त्याग नहीं करना चाहिये क्योंकि इस प्रकार के शाली-चावल गोधूमादि से सम्बद्ध स्थण्डिल में मलमूत्रका त्याग करने से जीवों की हिंसा की संभावना होने से संयम की विराधना होगी इसलिये संयम पालन करने वाले साधु और साध्वी को गोधूमादि सम्बद्ध स्थण्डिल जाणिज्जा' ने 2ी शते २५ सिने गQ3-इह खलु गाहावइ वा गाहावई पुत्ता वा' मा २२ सभा २ श्रा१४ भने गृहपतिन पुत्र 'सालिगी वा' शासी अर्थात् २३ 'वीहीणि वा' प्रीड यान्यने मथवा 'मुगाणि वा' भने । 'मासाणि वा' ५४२ मा 'कुलत्याणि वा' थार मया 'जवाणि वा' याने अथवा 'जवजवाणि वा' rural अर्थात् घडुन 'पइरिंसु वा' पा पाता ॥ 'पइरिति वा पतमानमा ५ पावे छे. भने 'पइरिस्संति वा' लावण्यमा ५ वा. ते लणे नुवेत 'अन्नयर सि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि' मा ४२wi cी घडविगेरेना सभा स्थतिमा 'नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा' भराभूत्रने त्या ४२३ नही म. सापायी in ઘહ વિગેરેથી સંબંધ સ્થડિલમાં મલમૂત્ર ત્યાગ કરવાથી જેની હિંસા થવાની સંભાવના હવાથી સંયમની વિરાધના થાય છે તેથી સંયમનું પાલન કરવા વાળા આધુ અને સાધ્વીએ ડાંગર ઘહુના સંપર્ક વાળા સ્થડિલમાં મલમૂવને ત્યાગ કર નહીં કેમકે સંયમનું પાલન श्री मायारागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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