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________________ आचारांगसूत्रे यंडिलंसि' अन्यतरस्मिन् तथाप्रकारे -अनन्तर्हितपृथिव्यादिगते स्थण्डिले 'नो उच्चारपाप्तपणं योसिरिज्जा' नो उच्चारप्रस्रवर्ण-मलमूत्रपरित्यागं व्युत्सृजेत्-कुर्यादिति भावः ॥सू. १॥ मूलम्-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण जाणिजा-इह खलु गाहावई या गाहावइ पुत्ता वा कंदाणि वा जाव बीयाणि वा परिसार्डिसु या परिसार्डिति वा परिसाडिस्संति वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा, से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा-इह खल्लु गाहावई वा गाहावइ पुत्ता बा सालीणि वा वीहीणि वा मुगाणि वा मासाणि वा कुलत्थाणि वा जवाणि वा शीतोदकयुक्त स्थान में बनाया हुआ है या उत्तिा छोटे छोटे एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय जीय युक्त प्रदेश में बनाया गया है या पनक-पनगे कीडे मकोडे त्रस जीव जात युक्त प्रदेश में बनाया हुआ है या शोतोदक मिश्रित गीलि मिट्टी रूप पृथिवीकाय जीव संबद्ध प्रदेश में बनाया हुआ है या मकरे के जालपरम्परा युक्त प्रदेशमें बनाया गया है 'तहप्पगारंसि थंडिलंसि' इस प्रकार के स्थल में बनाये हुए स्थण्डिल में साधु और साध्वी को 'नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा' मल मूत्र का परित्याग नहीं करना चाहिये क्योंकि इस तरह के साक्षात् पृथिवीकायिक जीव वगैरह से सम्बद्ध स्थण्डिल में मलमूत्र का परित्याग करने से जीवहिंसा की संभावना होने से संयम की विराधना होगी इसलिये संयम पालन करने वाले साधु और साध्वी इस प्रकार के पृथिवीकायिक जीव वगैरह से सम्बद्ध स्थण्डिल में मलमूत्र का परित्याग नहीं करे क्योंकि संयम का पालन करना ही साधु और साध्वी का परम कर्तव्य समझा जाता है ।सू० १॥ અથવા ઉસિંગ-નાના નાના એકેન્દ્રિય કીન્દ્રિય જીવવાળા પ્રદેશમાં બનાવવામાં આવેલ છે. અથવા પનક ફનો કીડી મકડા વિગેરે ત્રસ જીવવાળા પ્રદેશમાં બનાવેલ છે. અગર ઠંડા પાણીથી મળેલ ભીની માટી રૂપ પૃથ્વીકાય છથી સંબંધિત પ્રદેશમાં બનાવેલ છે. मया राणीयानी 11५२५२१ वा प्रदेशमा मनावर . 'अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि' मी ५ तवा ४।२थी मनावा २थतिम साधु भने सावी 'नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा' भरभूत्रन त्यास ४२३। नडी. भ3-1 सरना साक्षात पी. કાયના જી વિગેરેના સંબંધિત અંડિલમાં મલમૂત્રને ત્યાગ કરવાથી જીવહિંસાને સંભવ હોવાથી સંયમની વિરાધના થાય છે તેથી સંયમનું પાલન કરવા વાળા સાધુ અને સાધ્વીએ સ્થડિલમાં મલમૂવને ત્યાગ કરે નહીં. કેમકે-સંયમનું પાલન એજ સાધુ અને સાધ્વીનું પરમ કર્તવ્ય માનવામાં આવેલ છે. જે સૂ૦ ૧ છે श्री माया सूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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