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________________ आचारांगसूत्रे स्कन्धे वा-स्तम्भादिमध्यभागे, पीठे वा 'मंचंसि वा मालंसि वा' मञ्च वा माले वा 'अमुसि वा पासायंसि वा' अट्टे वा-अट्टालिकायां वा, प्रासादे वा 'अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि' अन्यतरस्मिन् वा-अन्यस्मिन् वा तथाप्रकारे-स्कन्धाधुपरि निर्मिते स्थण्डिले 'नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा' नो उच्चारप्रस्रवणम्-मलमूत्रपरित्यागं व्युत्सृजेत्-कुर्यात् 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'से जं पुण थंडिलं जाणिज्ना' स संयमवान् भिक्षुयेत् पुनः स्थण्डिलं वक्ष्यमाणस्थले जानीयात यथा-'अणंतरहियाए पुढवीए' अनन्तहिऐसा वक्ष्यमाण रूप से स्थण्डिल को जानले कि-'खंधंसि वा पीढसि वा' यह स्थण्डिल खन्धे के ऊपर अर्थात् स्कन्ध के ऊपर बनवाया गया है या पीठ अर्थात् फलक के ऊपर बनवाया गया है या 'मंचंसि वा मालंसि वा' मचान के ऊपर बनवाया गया है या माला अर्थात मलित्थम घरन के ऊपर बनवाया गया है या 'अहंसि वा' अ अर्थात् अट्टालिका के ऊपर बनवाया गया है या 'पासायंसि वा' प्रासाद महलों के ऊपर बनवाया गाया है तो 'अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि' इस प्रकार के स्थण्डिल में गिरने का भय से संयम की विराधना होने की संभावना से 'नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा' मलमूत्र का परित्याग नहीं करना चाहिये क्योंकि संयम का पालन करना ही संयमशील साधु और साध्वी का परम कर्तव्य समझा जाता है इसलिये स्कन्धादि के ऊपर निर्मित स्थण्डिल में साधु और साध्वी को मलमूत्र का परित्याग नहीं करना चाहिये। अब दूसरे ढंग से भी स्थण्डिल में मलमूत्र का परित्याग नहीं करना चाहिये यह बतलाते हैं-'से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा' वह पूर्वोक्त भिक्षु-संयमशील साधु मुनि महात्मा और भिक्षुकी साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से स्थण्डिल को जानले कि-'अणंतरहियाए पुढवीए' यह सावी ‘से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा' ले यउिसने मेवा प्रारथी -'खंधंसि वा पीठसि वा' मा स्थसिभूमी २४ अर्थात् स्त न। ५२ मनावर छे मथ। पीठ मेट , leया ७५२ मनावत छ. 'मंचंसि वा' भांयानी ७५२ मनावर छ. 24240 'मालंसि वा' भामा मथ। घरन५२ मनावामां आवे छे. अथवा 'अटुंसि वा' अटारीनी ५२ मनात छे. १२५। 'पासायंसि वा' भनी 3५२ मनात छे. 'अन्नयरंसि वा तहप्प गारंसि' भी ते ४२ना 'थंडिलसि' स्थतिमीमा ५ पाना मय व सयभनी [१२धना यानी संभावनाथी 'ना उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा' भरभूत्रने त्याग ४२३॥ નહીં. કેમકે સંયમનું પાલન કરવું એજ સાધુ અને સાધ્વીનું પરમ કર્તવ્ય માનેલ છે. તેથી કંધાદિની ઉપર બનાવેલ સ્પંડિલમાં સાધુ અને સાઠવીએ મલમૂત્રને ત્યાગ કરવો નહી. પ્રકારાન્તરથી સ્પંડિલભૂમીમાં મલમૂત્રને ત્યાગ ન કરવા વિશે સૂકાર કથન કરે છે. 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' त ति सयमशीय साधु म साबी से जं पुण श्री मायारागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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