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________________ आचारागसूत्रे S विधोऽभिग्रहो भवति-'अचित्तं खलु उपसज्जेज्जा' अहम् अचित्तं खलु प्रासुकं भूम्यादि स्थान मुपाश्रयिष्ये आश्रयं करिष्ये 'अवलंबिज्जा कारण' एवं किश्चिद् अचित्तं कुडयभित्यादिकम् अवलम्बयिष्ये कायेन, एवं 'विप्परिकम्माइ' विपरिक्रमिष्यामि-हस्तपादादीनामाकुचन प्रसारणरूपपरिस्पन्दं करिष्यामि, एवं 'सवियारं ठाणं ठाइस्सामि' सविचार-पादादिना किश्चिद् विहरणयुक्तं स्थानं स्थास्यामि-समाश्रयिष्यामि अवग्रहद्वारा गृहीतक्षेत्रे एव किश्चित् परिभ्रमणमपि करिष्यामि 'पढमा पडिमा' इति प्रथमा प्रतिमा-अभिग्रह विशेषरूपा प्रतिज्ञा बोध्या, 'अहावरा दुच्चा पडिमा-'अथापरा द्वितीया प्रतिमा प्ररूप्यते- 'अचित्तं खलु उपसज्जेज्जा' अहम् अचित्तं खलु भूम्यादिस्थानम् उपाश्रयिष्पे-आश्रयं करिष्ये कायेन 'विप्परिकम्माई' विपरिक्रमिष्यामि-हस्तपादादीनामाकुश्चनप्रसारणं विधास्वामि किन्तु प्रथमप्रतिमातः किश्चिद् वैशिष्टयमाह-'नो सविचारं ठाणं ठाइस्सामि' नो सवि वारम्-किञ्चित्क्षेत्रावधिविहरणयुक्तं महात्मा का इस प्रकार की अभिग्रहरूप प्रतिज्ञा होती है कि मैं अचित्त प्रासुक भूमि वगैरह स्थान का आश्रय करूंगा और कुछ अचित्त कुडय दीवालभित्ति वगैरह का ही शरीर से अवलम्बन करूंगा और अभिग्रह द्वारा गृहीत स्थान के अन्दर ही हाथ पादादि आकुञ्चन-समेटना और प्रसारण-फैलाना वगैरह परिस्पन्द करूंगा, और पाद वगैरह से कुछ विहरणरूप परिभ्रमण भी अवग्रह द्वारा गृहीत स्थान में ही करूंगा' इस प्रकार प्रथम प्रतिमारूप प्रतिज्ञा समझनी चाहिये। अब दूसरी प्रतिमा रूप प्रतिज्ञा का रूप बतलाते हैं-'अहावरा-दुच्चा पडिमा -अचित्तं खलु उवसज्जेजा' अब अन्य दूसरी प्रतिमा अर्थात् प्रतिज्ञा का तात्पर्य यह है कि-में अचित्त भूमि वगैरह स्थान का आश्रयण करूंगा, और 'अवलं. बिना काएण विप्परिकम्माइ' काय-शरीर से अचित्त कुडय दीवाल वगैरह का अवलम्बन (सहारा) करूंगा, और हाथ पाद वगैरह का आकुश्चन-समेटना और प्रसारण-फैलाना भी अभिग्रह द्वारा गृहीत स्थान के अन्दर ही करूंगा, 'नो કે કોઈ સાધુ મુનિને આવા પ્રકારની અવચહરૂપ પ્રતિજ્ઞા હોય છે કે-હું અચિત્ત પ્રાસુક ભૂમિ વિગેરે સ્થાનને આશ્રય કરીશ અને કઈ ભીંત વિગેરેને જ શરીરથી આશ્રય લઈશ અને અભિગ્રહ દ્વારા ગ્રહણ કરેલ સ્થાનની અંદર હાથ પગ વિગેરે લાંબાટૂંકા કરીશ તથા પગ વિગેરેથી વિહરણ અર્થાત્ ફરવારૂપ પરિભ્રમણ પણ અવગ્રહ દ્વારા ગ્રહણ કરેલ સ્થાનમાં જ કરીશ. આ રીતે પહેલી પ્રતિમારૂપ પ્રતિજ્ઞા સમજવી. मी प्रतिमा३५ प्रतिज्ञानु २१३५ मतामा मावे छे.-'अहावरा दुच्चा पडिमा' मील प्रतिमा अर्थात् प्रतिज्ञानु २१३५ मा प्रमाणे 2.-'अचित्तं खलु उबसज्जे. ज्जा' मथित भूमि विगेरे स्थाननी माश्रय ४रीश भने 'अवलंबिज्जा कारण' श. २थी अथित्त भीत विरेनु. २५qa'मन (सहा२।) . मने 'विप्परिकम्माई' ४.५ ५५ વિગેરે લાંબા ટુકડા કરવા તે પણ અભિગ્રહ દ્વારા ગ્રડણ કરેલ સ્થાનની અંદર જ કરીશ. श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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