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________________ ८२२ आचारांगसूत्रे डालकपर्यन्तम् सवित्तत्वाद अप्रासुकं मन्यमानो नो प्रतिगृह्णीयादिति भावः, ‘से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'से जं पुण जाणिज्जा' स साधुः यत् पुनः जानीयात् 'अंतरुच्छुयं वा जाव' अन्तरिक्षुकं वा-इक्षुपर्वमध्यभागं वा यावत्-इक्षुगण्डिका वा इक्षुत्वचं वा इक्षुसाल वा इक्षुडालकं वा 'अप्पडं वा जाव पडिगाहिज्जा' अल्पाण्डम् वा अण्डरहितम् यावत्-अप्राणम् अबीजम् अहरितम् अनुदकम् उत्तिङ्गपनकदकमृत्तिकालूतातन्तुजालरहितं यदि जानीयात् तर्हि तथाप्रकारम्-- अन्तरिक्षुकं यावद् इक्षुडालकपर्यन्तम् अचित्तत्वाद् प्रासुकं है तथा लूलातन्तु-मकरे के जाल परम्परा से भी सम्बद्ध है ऐसा जान ले तो इस प्रकार के अण्डे वगैरह से सम्बद्ध इक्षु दण्ड-गन्ने का पर्व मध्य भाग वगैरह इक्षु डाल पर्यन्त को सचित्त होने से अप्रासुक समझते हुए नहीं खाना चाहिये क्योंकि इस प्रकार के अण्डादिसे युक्त गन्ना को खाने से जीवहिंसा का संभव होने से संयम की विराधना होगी इसलिये नहीं खाना चाहिये। अब अण्डे वगैरह के सम्पर्क से रहित होने पर गन्ना पर्व को खाने का विधान कहते हैं-से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, से जं पुण जाणिज्जा' वह पूर्वोक्त भिक्षु-संयमशील साधु और भिक्षकी-साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से जान ले कि 'अंतरच्छुथं वा जाव' यह गन्ने का पर्व मध्यभाग और यावत्-गन्ने का पर्व खण्ड या गन्ने का छिलका या गन्नेका सारभूत रस या गन्ने का खण्ड 'अप्पंडं वा जाव पडिगहिज्जा' अण्डों से सम्बद्ध नहीं है एवं यावत् अंकुर उत्पादक सजीव बीजों से भी संम्बद्ध नहीं है एवं तथा शीतोदक से भी युक्त नहीं है एवं उत्तिङ्ग -छोटे छोटे प्राणियों से भी सम्बद्ध नहीं है और पनककीडे मकोडे से भी संयुक्त नहीं है एवं शीतोदक मिश्रित गिली मिट्टी से भी सम्बद्ध તેમના જાણવામાં આવે તે આ પ્રકારથી ઇંડા વિગેરેના સંબંધવાળી સેલડી અથવા તેના કકડા કે મધ્યભાગ વિગેરે સચિત્ત હોવાથી અપ્રાસુક સમજીને ખાવા નહીં. કેમ કે આ પ્રકારના ઈંડાદિથી યુક્ત સેલડીને ખાવાથી જીવહિંસાની સંભાવના હોવાથી સંયમની વિરાધના થાય છે. તેથી તે ખાવા નહીં, હવે ઈડા વિગેરેના સંપર્કથી રહિત હોય તે તેને ગ્રહણ કરવાનું વિધાન બતાવે छ.-'से भिक्ख वा भिक्खुणी वा ते पूरित संयमा साधु मने साप 'से जं पुण जाणिज्जा' ने सेभ तो 3-'अंतरुच्छय वा जाव' या सेasीन सहाना मध्यमा भने યાવત સેલડીને પર્વ ખંડ કે સેલડીના છેડા અથવા સેલડીને રસ અથવા સેલડીના કકડા 'अप्पंडं वा' डाना समय थी. 'जाव पडिगाहिज्जा' या मरो॥६४ स भीया પણ સંબંધિત નથી. તથા લીલા તણ ઘાસ વિગેરે વનસ્પતિકાયના જીના સંબંધવાળી તથા. શીદવાળી નથી તેમજ નાના નાના પ્રાણિયેના સંબંધવાળી નથી તથા પનક કીડી મકડાથી પણ સંયુક્ત નથી. તથા શીદઠ મિશ્રિત લીલી માટીના સંપર્કવાળી નથી. તથા સૂતા તંતુ કરેળીયાની જાળ પરંપરાથી પણ સંયુક્ત નથી. તેમ જાણીને કે श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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