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________________ आचारांगसूत्रे जनागमनभयात् विषमाः कुर्यात्, एवं "विसमायो सिज्जाओ समाओ कुज्जा" विषमाः शय्याः समाः कुर्यात साधु समाधानार्थे समीकृताः स्युः, एवम् 'पवयाओ सिज्जाभो निवायाओ कुज्जा' प्रयाताः वायुसंचारयुक्ताः शय्याः शैत्यभयाद् निवाताः वायुसंचारहिताः कुर्यात, एवं 'निवायाओ सिज्जाओ पवायाओ कुज्जा' निवाताः वायुसंवारहिताः शय्याः निदाघकालापेक्षया प्रवाताः वायुसंचारयुक्ताः कुर्यात्, एवम् 'अंतो बावहिं वा उवस्सयस्स हरियाणि छिंदिय छिदिय दालिय दालिय संथारगं संथारिज्जा' अन्तः मध्ये वा, बहिर्वा उपाश्रयस्य मध्यप्रदेशे बाह्यस्थले वा यानि हरितानि हरितवर्णानि तृणधासादीनि स्युः तानि छित्त्वा छित्वा पौनः पुन्येन तेषां छेदनं विधाय, विदार्यविदार्य समूलम् उत्पाट्य उत्पाटय च उपाश्रयस्य संशोधन संस्कारश्च विदध्यात्, एवम् संस्तारकं संस्तरं संस्तारयेत्, विस्तारयेत्, विस्तृतं कुर्यादित्यर्थः, साध्वर्य संस्तारकरणे हेतुमाह-'एस विलुंगयामो सिज्जाए' एष साधुः आगमन के भय से विषमाः कुर्यात्-विषम करे और 'विसमाओ सिज्जाओ समाओ कुज्जा' विषमाः शय्याः विषम संस्तारकों को यदि समाः कुर्यात्-साधुओं के समाधानार्थ सीधा करे तो भी आधाकर्मादि दोष होगा, इसी तरह 'पवायाओ सिज्जाओ निवायाओ कुज्जा' वायु संचार युक्त शय्या-संस्तारकों को यदि 'निचायाओकुज्जा' निवात ठण्डी ऋतु में शैत्य के भय से वायुसंचार रहित करे, एवं 'निवायाओ सिज्जाओ पवधाओ कुज्जा' वायुसंचार रहित शय्या-संस्ताकों को यदि गर्मी के समय में वायु संचार युक्त करें तो भी आधाकर्मादि दोष होगा, 'अंतो वा बहिंवा उवस्मयस्स दालिय दालिय संथारगं संथारिज्जा एस बिलुंगयामो सिज्जाए' उपाश्रय के अन्दर या बाहर में 'हरियाणि छिदिय' छिदिय हरे भरे घासों को,-चार वार छेदन-काटकर, बारबार विदीर्ण बिछाना वगैरह को यदि संस्तारण करें 'संथारगं संथरिज्जा' संथरा-विछाना वगैरह को यदि संस्तारण करे बिछावे, क्योंकि 'एस यह वेचारा निर्ग्रन्थ-साधु 'विलंगयामो' अकिंचनाः शय्या-संथरा के लिये अकिंचन-अनाथ-गरिब है इसी समाओ कुज्जा' विषम सता२४ने साधुसोना समाधान भाट सीधा ४२ ते ५ भाषाभाष मागे छ. मे शते 'पवायाओ सिज्जाओ निवायाओ कुज्जा' पायु सयार युत सस्ता२ने से तुमा 837ना भयथी वायु सया२ विनानी ४२ तथा 'निवायाओ सिज्जाओ पवायाओ कुज्जा' वायु सया२ विनानी -सरता२४ने नेमभिना समयमा वायु सयारवाजी ४२ त ५९ साधा होष दागे छे. 'अंतो वा बहिं वा उवस्सयस्स' उपाश्रयनी म२३ महा२ 'हरियाणि छिदिय छिदिय' बीमातरी२ पार वार आधीन 'दालि. य दालिय' वारपार पाडत शन अर्थात् छोटीन संथारगं संथरिज्जा' सरता२४-५थारी विरेन ने पाथरे भ 'एस विलुंगयामो सिज्जाए' मा जिया। साधु शय्या भाट અકિંચન અનાથ છે, તેથી એવું સમજીને જે સાધુ માટે શમ્યા પાથરે તે પણ આધા श्री. ॥॥२॥ सूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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