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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू. ५ पञ्चमं वस्त्रैषणाध्ययननिरूपणम् ६८१ निष्पन्नानि वस्त्राणि दुकूलानि बोध्यानि 'पट्टाणि वा मलयाणि वा' पट्टानि वा-पट्टसूत्रनिमितानि विशेषवस्त्राणि पट्टानि उपन्ते, मलयानि वा-मलयजसूत्रोत्पन्नानि वस्त्राणि मलयानि बोध्यानि, 'पन्नुन्नाणि वा' प्रनुन्नानि वल्कलतन्तुनिष्पन्नानि वस्त्राणि प्रनुनानि उच्यन्ते 'अंसुयाणि वा' अंशुकानि वा अंशुकदेशोद् भवानि वस्त्राणि अंशुकानि इत्युच्यन्ते, 'चीणंसुयाणि वा' चीनांशुकानि वा-चीनदेशोद्भवविशिष्टवस्त्राणि चीनांशुकानि कथ्यन्ते, 'देसरागाणि वा' देशरागाणि वा-नानादेशोद्भवविशिष्टवस्त्राणि देशरागाणि इत्युच्यन्ते' देशीयरागनिर्मितानि वा वस्त्राणि देशरागाणि 'आभिलाणि वा' आभिलनामकदेशविशेषोद् भववस्त्राणि आभिलानि 'गजफलाणि वा' गजफलानि वा गजफलनामकदेशोदभववस्त्राणि गजफगनि व्यवहियन्ते 'फालियाणि वा' फालिकानि-फलिकनामक देशविशेषोद्भवविशिसे निष्पन्न हुए हैं तथा जो वस्त्र ‘पट्टाणि वा' पट्टसूत्रों से निर्मित होने के कारण विशिष्ट पट्ट वस्त्र कहलाते हैं इसी तरह जो वस्त्र 'मलयाणि वा' मलयाचल स्थित सूत्रों से उत्पन्न होने के कारण मलय वस्त्र कहलाते हैं ऐसे ही जो वस्त्र 'पन्नुन्नाणि वा' वल्कल छाल त्वचा तंतुओं से निष्पन्न होनेके कारण प्रनुन्नवस्त्र कहलाते हैं एवं जो वस्त्र 'अंसुयाणि वा' अंशुक देश में होनेसे अशुंक वस्त्र कहलाते हैं तथा जो वस्त्र –'चीणंसुयाणि वा' चीनदेश में उन्न होने से चीनांशुक कहलाते हैं एवं जो वस्त्र 'देसरागाणि वा' अनेक देश में उत्पन्न होने से देशराग हैं अथवा देशीयराग से निर्मित होने से देशराग शब्द से व्यवहत होते हैं तथा जो वस्त्र-'आभिलाणि वा' आभिल नामके देश विशेष में तैयार किये जाने से आमिलवस्त्र कहलाते हैं तथा जो वस्त्र 'गजफलाणि वा' गजफलनामके देश में उत्पन्न होने से गजफल कहलाता है एवं जो वस्त्र ‘फालियाणि वा फलिक नामके यस पासमाथी मनापामा सात सय तेव। १२ तथा 'पट्टाणि वा' २ पत्र पट्टसूत्रथी मनास पाना २२ विशेष प्रर्नु पट्ट पत्र ४उपाय छे. तथ। 'मलयाणि वा' જે વસ્ત્ર મલયાચલમાં ઉત્પન્ન થયેલ સુતરમાંથી બનાવેલ હોવાથી મલય વસ્ત્ર કહેવાય छ. मे प्रभारी २ पत्र ‘पन्नुन्नाणि वा' १६४सनी छसना तुमाथी मनावर डाय ते अनुन्न १२ ४उपाय छे. तथा 'अंसुयाणि वा' २ पत्र पशु देशमा मने डाय ते अशु पत्र उपाय छे. तथा 'चीणंसुयाणि वा' यान देशमा नि०५-थवाथी थानांशु वाय छ. तया वर 'देसरागाणि वा' भने देशमा उत्पन्न या डाय ते हे २२॥ १२ કહે છે અથવા દેશીય રાગથી નિર્મિત થવાથી દેશરાગ શબ્દથી વ્યવહાર કરેલ છે. 'आभिलाणि वा' तथा २ पत्र मानिस नमना देश विशेषमा तैया२ ५ये डाय ते पखने मालिश से उपाय छे. तथा 'गज्जफलाणि वा' २ १२ १०४५८ नाभन देशमा उत्पन्न थये। डाय ते ४५ ४उपाय छे. 'फालियाणि वा' ने पत्र ४ि नामना देशमा S५-- ये डाय ते सिर पर उपाय छे. तथा 'कोयवाणि वा' रे पर य१ देशमा आ०८६ श्री.आयासूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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