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________________ आचारांगसूत्रे - C टीका - पुनरपि साधूनां साध्वीनाञ्च भाषणायोग्यां भाषां निरूपयितुमाह से भिक्खू भिक्खुणी वा' स पूर्वोक्तो संयमवान् भिक्षु भिक्षुकी वा 'नो एवं वइज्जा' नो एवं वक्ष्यमाणरीत्या वदेत् तद्यथा-' नभोदेवित्ति वा गज्जदेवित्ति वा' नमः आकाशः देव इति वा न वदेदिति पूर्वेणान्वयः, एवं गर्जति गर्जनकर्ता मेघः देव इति वा न वदेदिति एवं 'विज्जुदेवित्ति वापदेविति वा विद्युद् देव इति वा प्रवृष्टो वर्षति देव इति वा न वदेदितिभावः, तथा 'निवुडदे वित्ति वा' निवृष्टो - निरन्तरं वर्षतिदेव इति वा न वदेदिति 'पडछ वा वासं मा वा पडउ' पततु वा वर्षा, मा वा पत इत्यपि न वदेदिति, 'निष्पन्नउ वा सहसं मावा निष्फ नउ' निष्पद्यताम् - उत्पयतां वा सस्यम् शाल्यादिकम् मा वा निष्पद्यताम् इत्यपि न वदेदिति, 'विभाउ वा रयणी मा वा विभाउ' विभातु शोभतां वा रजनी, मा वा विभातुशोभताम् इत्यपि न वदेदिति 'उदेउ वा सूरिए मा वा उदेउ' उदेतु-उदयं प्राप्नोतु वा सूर्यः, मा वा उदे-उदयं प्राप्नोतु इत्यपि न वदेदिति भावः 'सो वा राया जयउ वा मावा संयमशील साधु एवं भिक्षुकी साध्वी ऐसा वक्ष्यमाणरूप से नहीं बोले जैसे कि 'नभोदेवित्ति वा' नभ-आकाश देव है ऐसा नहीं बोले एवं - 'गज्जदेवित्ति वा ' गर्जन करने वाले मेघ देव है ऐसा भी नहीं बोलना चाहिये एवं 'विज्जुदेवित्ति वा' विद्युत् देव है अथवा 'पवुडदेवत्तिवा' देव पवृष्ट अर्थात् वरस रहा है ऐसा भी नहीं बोले तथा 'निवुडदे वित्तिवा' निरंतर लगातार देव बरस रहा है ऐसा भी नहीं बोले एवं 'पडउवा वास मा या, पडउ' वर्षा पडे या नहीं भी वर्षा पडे ऐसा भी नहीं बोलना चाहिये एवं 'निष्फज्जउ वा' शाली- डांगर-चावल वगैरह शस्य उपजे अथवा 'सस्सं मा वा निष्फज्जउ' शाल्यादि शस्य नहीं उपजे ऐसा भी साधु और साध्वी को नहीं बोलना चाहिये एवं 'विभाउ वा रयणी मा वा विभाऊ' रजनी रात खूब शोभे तथा रजनी नहीं शोभे यह भी नहीं बोलना चाहिये तथा 'उदेउवा सूरिएमा वा उदेउ' सूर्य उदयको प्राप्त हो या सूर्य उदय को नहीं प्राप्त हो ऐसा भी नहीं बोलना चाहिये अर्थात् सूर्य उदित हो या सूर्य नहीं 'नो एवं वइज्जा' मा वक्ष्यमाणु रीते मोसवु नहीं प्रेम है-'नमो देवत्ति वा' माठाश हेव तेभोवु नहीं' तथा 'गज्ज देवित्ति वा ना ४२नारो भेघ हेव छे भ देव तेभ पशु अहेवु नहीं' तथा 'पट्टदेवित्ति वा द्वेव वरसी रह्यो छे तेभ या मोसवु नाहीं' 'निवुदुदेवित्ति वा सगातार हे वरसी रह्यो छे ते गुडेवु' नहीं 'पडउवा वासं मावा पडउ' तथा वरसाह पडे अथवा न पडे ते यशु मोवु नहीं तथा 'निष्कज्जउ वा सरस' मा वा निम्फज्जउ' ડાંગર વિગેરે અનાજ ઉપજે કે બાજરી ડાંગર વગેરે ન ઉપજે એવુ' પણ સાધુ साध्वीये 'डेवु' नहीं' 'विभाउ वा स्यणि मा वा विभाउ तथा रात भूम शोले छे अथवा पण माझ ं नहीं' 'विज्जु देवित्ति वा' श्री रात नथी शोलती तेभ पशु उडेवु नहीं, तथा 'उदेउ वा सूरिए मा वा उदेउ' सूर्य उगे ६२६ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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