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________________ आचारांगसूत्रे वा' धार्मिक इति वा धर्मप्रिय इति वा 'एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभिकंख भासिज्जा' एतत्प्रकाराम्-अमुक इत्यादि धर्मप्रिय शब्दपर्यन्ताम् भाषाम् अप्तावद्याम् आगाम् अनिन्याम् यावत्-अक्रियाम् अकर्कशाम् अकटु काम् अनिष्ठुराम् अपरुषाम् नानर्थदण्डप्रवृत्तिजननीम् अच्छेदन करीम् अभेदनकरीम् अपरितापनकरीम् अनपद्रावण करीम् अभूतोपघातिनीम् भाषाम् अभिकाझ्य-मनसा पर्यालोच्य हृदि अवधार्य विचार्य इत्यर्थः भाषेत वदेदिति भावः, अथ स्त्री सम्बोधनविषये वक्तव्यता प्रकारमतिदिशमाह-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स संयमवान् भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'इस्थि आमंमाणे स्त्रियम् स्त्रीजातिम् आमन्त्रयन सम्बोधयन् 'आमंतिए वा अप्पडिमुणेमाणे' आमन्त्रितां सम्बोधितां वा अप्रतिशण्वतीम् 'नो एवं वइज्जा' नो एवम्-वक्ष्यमाणरीत्या वदेत् तथाहि-'होलीइ वा गोली ति वा इत्थीगमेणं नेयम्,' भासं' इस प्रकार की भाषाको हृदय से विचार कर बोलना चाहिये किन्तु यह संबोधन का वाक्य 'असावज' सावध सगर्थ नहीं होना चाहिये एवं 'जाय अभिकख भासिज्जा' यावत् सम्बोधन वाक्य अनर्थ दण्ड प्रवृत्ति जनक भी नहीं होना चाहिये और कर्कश भी नहीं होना चाहिये तथा कटु एवं निष्ठुर तथा परुष भी नहीं होना चाहिये एवं वह सम्बोधन की भाषा कर्माश्रव को भी उत्पन्न करने वाली नहीं होनी चाहिये एवं मर्मको छेदन करने वाली भी नहीं होनी चाहिये तथा हृदय को विदीर्ण करने वाली भी नहीं होनी चाहिये तथा मनका परिताप जनक भी नहीं होनी चाहिये इत्यादि पूर्वोक्त रीति से समझ लेना चाहिये अब स्त्री जाती को सम्बोधन करने के लिये वाक्य का प्रयोग बतलाने के तात्पर्य कहते हैं 'से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, इत्थि आमंतेमाणे,' वह पूर्वोक्त भिक्षुसंयमशील साधु और भिक्षुकी-साध्वो किसी भी स्त्री को आमन्त्रण-सम्बोधन करते हुए अथवा 'आमंतिएवा' सम्बोधित आमन्त्रित करने पर भी 'अपडि धम्मप्पिएति वा धमप्रिय ! 'एयप्पगारं भासं असावज्ज' मा URनी भाषान હદયથી વિચાર કરીને બેલવી જોઈએ પરંતુ એ સંબોધન વાક્ય સાવધ-સગર્ય હોવું नन 'जाव अभिकख भासिज्जा' यावत् ते समोधन पाय सनथ ६ प्रवृत्ति જનકપણ હાવું ન જોઈએ. અને કર્કશ પણ રહેવું ન જોઈએ. તથા કટુ એટલે કે નિષ્ફર તથા પરૂષ પણ ન હોવું જોઈએ. તથા એ સંબંધનની ભાષા કસવજનક પણ ન હોવી જોઈએ તથા મર્મ છેક પણ હોવી ન જોઈએ. તથા હૃદયને ભેદનારી પણ હોવી ન જોઈએ. ઈત્યાદિ પૂર્વોક્ત રીતે સમજીને ભાષા બોલવાથી સંયમની વિરાધના થતી નથી. હવે સ્ત્રિયોને સંબોધન કરવાના વાકય પ્રવેગનું કથન કરે છે– _ 'से भिक्ख वा भिक्खुणी वा' ते पूर्वरित सयभशी साधु सन. सावी 'इत्थि आमंतेमाणे' ।। ५९ सीन मामात्र यात समोधन ४२०i मने 'आमंतिए वा' भाभर ४२५i छtia सी 'अप्पडिसुणेमाणे' सामने नही तो तर 'नो एवं वइ श्री माया सूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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