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________________ आचारांगसूत्रे असच्चामोसा' या च भाषा असत्याऽमृषा-न सत्या नापि मृषा व्यावहारिकी भाषा वर्तते तामपि 'तहप्पगारं भास' तथाप्रकारम् सत्या असत्यां मृषाश्च भाषाम् 'असावज्ज जाव अभूओवघाइयं' असावधाम् अगाम् यावद् अक्रियाम् नानर्थदण्डप्रवृत्ति जननीम, अकर्कशाम्, अकटुकाम् अनिष्ठुराम अपरुषाम् अकर्माश्रवकरीम् अच्छेदनकरीम् अभेदनकरीम् अपरितापनकरीम् अनपद्रावणकरीम् अभूतोपघातिनीम् 'अभिकंख भासं भासिज्जा' अभिकाक्ष्य मनसा पर्यालोच्य सर्वदा असावधादिरूपां भाषां भाषेत साधुः साध्वी च वदेदिति भावः ॥सू० २॥ वास्तव में देखने पर भी व्याध को कहा जाता है कि मैंने हरिण को नहीं देखा है यहां पर यह हरिण का अदर्शनात्मक वचन मृषा होने पर भी सत्य ही माना जाता है इसी प्रकार 'जा य भासा असच्चामोसा' जो भाषा सत्य रूपा भी नहीं है और असत्यात्मक मृषा रूपा भी नहीं है 'तहप्पगारं भासं असावज्ज' ऐसी असत्यामृषा रूपा व्यवहारिकी भाषा सावद्य-सगहर्य निन्दनीय नहीं हो और 'जाव अभूओवघाइयं यावत् अनर्थदण्ड प्रवृत्ति करनेवाली क्रिया युक्त भी नहीं हो तथा कर्कश भी नहीं हो और कटु-कठोर भी नहीं हो तथा निष्ठुर-नीरस भी नहीं हो और परुष भी नहीं हो तथा-कर्माश्रव को उत्पन्न करनेवाली भी नहीं हो और मर्म का छेदन करनेवाली भी नहीं हो एवं हृदय को विदीर्ण करनेवाली भी नहीं हो एवं मन में परिताप करनेवाली भी नहीं हो और चित्त को अपद्रावण-क्षोभ करने वाली भी नहीं हो और भूत प्राणी जीवजन्तुओं का उपघात करनेवाली भी नहीं हो ऐसी अत्यन्त सरल 'अभिकंख भासं भासिज्जा' मृदु भाषा को ही हृदय से पर्यालोचन कर हमेश साधु और साध्वी बोले जिससे किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं पहुंचे, क्योंकि संयम આવે છે જેમકે હરણને ખરી રીતે જવા છતાં શિકારીને કહેવામાં આવે છે કે મેં હરણને જોયું નથી. અહીંયા હરણ સંબંધિ અદર્શાત્મક વચન મળ્યા હોવા છતાં પણ સત્ય જ भनाय छे. से प्रभारी 'जा य भासा असच्चामोसा' ने भाषा सत्य३५। ५ नथी भने मसत्यात्म भूष॥३५॥ ५ न डाय 'तहप्पगारं भास' सेवी सत्या समृष३५॥ 448२४ी ला! 'असावज्ज' सावध-सराय नाहनीय नाय 'जाव अभूओवघाइयं' यावत् मनथ દંડ પ્રવૃત્તિ કરવાવાળી ન હોય તથા કર્કશ પણ ન હોય અને કઠેર પણ ન હોય તથા નિષ્ફર અને નિરસ પણ ન હોય અને પરૂષ પણ ન હોય અને કર્માસવને ઉત્પન્ન કરનારી ન હોય તથા મર્મનું છેદન કરનારી પણ ન હોય તથા હૃદયમાં આઘાત પહોંચાડવા વાળી પણ ન હેય તથા મનમાં પરિતાપ પહેચડવા વાળી પણ ન હોય અને ચિત્તને ક્ષેભ કરનારી પણ ન હોય અને ભૂત-પ્રાણજીવજંતુઓને ઘાત કરનારી પણ ન હોય सवी सत्यत स२८ भने भृढ भाषा 'अभिकंख भास भासिज्जा' यमा पर्या લેચન કરીને સાધુ અને સાધ્વીએ બેલવી કે જેથી કોઈ પણ પ્રાણીને કષ્ટ થાય નહીં श्री. सायासंग सूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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