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________________ मर्मप्रकाशिका टोका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू० १ चतुर्थ भाषाजातमध्ययननिरूपणम् ६०९ अथ पूर्वोक्त विषयाणां स्त्रोत्प्रेक्षितत्व निरासार्थमाह-‘से बेमि जे अईया जे य पडुप्पन्ना जे अणागया अरहंता भगवंतो सम्वे ते एयाणि चेव चत्तारि भासज्जायाई सोऽहम् यद् एतद् ब्रवीमि कथयामि तत् सर्वम् ये अतीताः, ये च प्रत्युत्पन्नाः वर्तमानाः, ये च अनागता भाविनः अर्हन्तो भगवन्तः तीर्थकृतः सर्वे ते भूतवर्तमानभविष्यत्कालिकाः आदिनाथप्रभृति महावीरपर्यन्ताः वीतरागाः केवलिनः एतानि चैव पूर्वोक्तानि चखारि भाषाजातानि 'भासिंसुवा भासंति वा भासिस्संति वा' अभाषित वा-पूर्वम् अवादिषुः, भाषन्ते वा-सम्प्रति वदन्ति भाषिष्यन्ते वा-वदिष्यति, एतावता यदहमेतद् ब्रवीमि तत् सर्वैरेव अतीतानागतवर्तमानइन चारों भाषा जातों में साधु प्रथम और चतुर्थ भाषाजात को भाषासमिति से युक्त होकर संयम पूर्वक ही बोले किन्तु द्वितीय और तृतीय भाषाजात को नहीं बोले क्योंकि उक्त द्वितीय तथा तृतीय भाषाजात से बोलने पर संयम की विराधना हो सकती है अब उपर्युक्त विषयों को प्रमाणित करने के लिये ग्रन्थकार सुधर्मास्वामी अपने मनगढन्त कल्पना का निरासार्थ कहते हैं कि 'से बेमि जे अईया जे य पडुप्पन्ना' यह जो कुछ मैं कह रहा हूं उस सभी बात को अतीत वर्तमान 'जे य अणागता' एवं भविष्य तीनों कालों में क्रमशः उत्पन्न होजाने वाले तथा उत्पन्न होते हुए और उत्पन्न होने वाले सभी 'अरहंता भगवंतो सम्वे ते' भगवान् तीर्थकर आदिनाथ से लेकर महावीर पर्यन्त वीतराग केवल ज्ञानी 'एयाणि चेव चत्तारि भासज्जयाई' इन चार प्रकार के भाषाजातों का 'भासिसु वा भासंति वा भासिस्संति वा यथायोग्य प्रयोग कर चुके हैं और सम्प्रति प्रयोग कर रहे हैं और आगे भी भविष्य काल में प्रयोग करेंगे अर्थात् इस चार प्रकार का भाषाजात के विषय में मैं जो कह रहा हूं उस को अतीत છે. તેથી આ ચેથી ભાષાજાતને અસત્યાડમૃષા શબ્દથી વ્યવહાર કરે છે. આ ચારે ભાષા જાતમાં સાધુએ પહેલી અને એથી ભાષા જાતને ભાષા સમિતિથી યુક્ત થઈને સંયમ પૂર્વક જ બલવી. પરંતુ બીજી અને ત્રીજી ભાષાજાત બલવી નહી કેમ કે એ બીજી અને ત્રીજી ભાષાજાત બેસવાથી સંયમની વિરાધના થાય છે. હવે ઉપરોક્ત વિષના સમર્થન માટે ગ્રન્થકાર સુધર્માસ્વામી પિતાની મનસ્વી ४पनानानिरासन भाट ४९ छ -'से बेमि जे अईया जे य पडुप्पन्ना जे य अणागया' २ मा હું કહી રહ્યો છું એ સઘળી વાતને અતીત, વર્તમાન અને ભવિષ્ય એ ત્રણે કાળમાં ક્રમશઃ Gपन्न २४ गयेस तथा 4-1 थये। मन पन्न थना२। मा 'अरहंता भगवंतो सब्वे તે ભગવાન તીર્થકર આદિનાથથી લઈને મહાવીર સ્વામી પર્યન્તના વીતરાગ કેવળજ્ઞાની 'एयाणि चेव चत्तारि भासज्जाई' मा या२ प्रजानी भाषा ताना यथायोग्य 'भासिंसु वा भासंति वा' प्रथा ४॥ युस छ. अने वतभानमा प्रयो॥ ४६॥ २॥ छ भने भविष्यमा ५५ 'भासिस्सति वा प्रयो। २. अर्थात, म बार पानी भाषा तना समयमा आ.७७ श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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