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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. २ सू० २० पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् ५७ प्रविष्टः सन् ‘से जाई पुणकुलाई जाणिज्जा' स साधुः भिक्षार्थ प्रवेष्टुकामः पुनरिति वाक्यालंकारे यानि कुलानि एवं भूतानि वक्ष्यमाणप्रकाराणि जानीयात् अवगच्छेत् तेषु प्रविशेदि. त्यन्धयः । तानि आह-'तं जहा'-तानि यथा 'उग्गकुलाणि वा' उग्रकुलानि वा, उग्राः आरक्षकाः तेषां कुलानि इत्यर्थः, 'भोगकुलाणि वा' भोजकुलानि वा भोजाः राज्ञामपि पूज्य स्थानीयाः, 'राइनकुलाणि वा' राजन्यकुलानि वा, राजन्याः मित्रस्थानीयाः तेषां कुलानि चा, 'खत्तियकुलाणि वा' क्षत्रियकुलानि वा क्षत्रियाः राष्ट्रकूटभृतयः तेषां कुलानि वंशाः वास्युः, 'ईक्खागकुलानि वा' इक्ष्वाकुकुलानि वा इक्ष्वाकवः ऋषभस्वामिवंशोद्भवाः तेषांकुलानि चा, 'हरिवंसकुलाणि वा' हरिवंशकुलानि वा, हरिवंशाः हरिवंशोत्पन्नाः अरिष्टनेमिचंशस्थानीयाः तेषां कुलानि वा, 'एसियकुलाणिवा' एष्यकुलानि वा एष्याः गोष्ठाः तेषां कुलानि चा, 'वेसियकुलाणि वा' वैश्यकुलानि वा वैश्याः वणिजः तेषां कुलानि वंशाः वा, 'गंडागकुलाणि वा' गण्डककुलानि वा, गण्डो नापितः ग्रामोद्घोषकः तेषां कुलानि वा, 'कोदागकुलाणि वा' कोट्टागाः काष्ठतक्षकाः वद्धकिनः तेषां कुलानि वा 'गामरक्खगकुलाणि वा' ग्रामवह भिक्षु-भाव साधु और भिक्षु की भाव साध्वी 'जाव पविढे समाणे' यावत् गृहपति-गृहस्थ श्रावक के घर में पिण्डपात प्रतिज्ञा से-भिक्षा लेने की इच्छासे अनुपविष्ट होकर 'जाइंपुण कुलाई जाणिज्जा' जिन कुलों को ऐसा जान ले की 'तं जहा-उग्गकुलाणि वा' ये उग्रों का-आरक्षकों का कुल है 'भोग कुलाणिवा' भोज जाति जो कि राजाओं के भी पूज्यमाने जाते हैं, उनका कुल है एवं 'राइण्ण कुलाणि वा' राजन्य कुलानि वा-मित्र स्थानिय राजाओं का कुल है तथा 'खत्तिय कुलाणि वा क्षत्रिय कुलानि वा-राजपुतों का कुल है एवं 'इक्खाग कुलाणि चा' इक्ष्वाकुलकुानि वा-ऋषभस्वामि के बंश में उत्पन्न होने वाले का कुल है एवं 'हरिवंस कुलाणि वा' अरिष्ट नेमिके वंश में उत्पन्न होने वाले का कुल है, तथा 'एसियकुलाणि वा' एष्य कुलानि वा-गोष्ठ का कुल है 'वेसिय कुलाणि वा' वैश्यों वणिजों का कुल है एवं 'गंडाग कुलाणि वा' गण्डक कुलानि वा-नापितो ग्रामोदघोषकों का कुल है, तथा 'कोहाग कुलाणि वा' काष्टतक्षक-सुथारों का कुल है, तथा 'गामरक्खगकुलाणि चा' ग्रामरक्षककुलानि वा-ग्रामरक्षकों-नगर २ गुणाने मेवा समरे 'तं जहा' भाडे-'उग्गकुलाणिवा' अशाणाना ५२ छ. 'भोगकुलानिया' ले तन रे। मामा ५ उत्त५ मानवामा मावे छे. तेमना घरे। छे. तथा 'राइण्ण कुलाणिवा' भित्रतावा नसोनामा ५३। छ. तथा 'खत्तियकुलाणि वा' २४ ताना मा धरे। छ. तथा 'इक्खागकुलाणि वा' अषलस्वामीनाथन या घरी छे. तथा 'हरिवंसकुलाणिवा' भरिटनेभानावशलेना ॥ ५। छ, तथा एसियकुलाणि वा' गाना पुण छ. तथा 'वेसियकुलाणि वा वैश्याना साध छ तथा 'गंडागकुलाणिवा' मान। माघ। छ. तथा 'कोडाग कुलाणिवा' सुथाराना ॥ ५॥ छ, तथा 'गामरक्खगकुलाणिवा' ग्राम श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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