SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 568
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. २ सू० २१ तृतीयं ईर्याध्ययननिरूपणम् ५५७ विशेषान् ‘हरियाणि वा' हरितानि वा हरितसचित्तवनस्पतिविशेषान् 'अवलंबिय अवलंबिय' अवलम्ब्य अवलम्ब्य पौनः पुन्येन अवलम्बनं कृत्वा 'उत्तरिज्जा' उत्तरेत उत्तीरें भवेत, अथच 'जे तत्थ पाडिवहिया' ये तत्र-तस्मिन्-मार्ग मध्ये प्रातिपथिकाः अध्वनीनाः प्रतिपान्था पथिकाः 'उवागच्छंति' उपागच्छन्ति ते पाणी जाइज्जा' तेभ्यः पाणिं हस्तावलम्बन याचेत 'जाइत्ता तो संजयामेव' याचित्वा तेषां हस्वावलम्बनं गृहीत्वा ततः तदनन्तरं संयतमेव यतनापूर्वकमेव 'अवलंबिय अवलंबिय' अवलम्ब्य अवलम्ब्य हस्तावलम्बनपूर्वकं 'उत्तरिज्जा' उत्तरेत-उत्तीणों भवेत् एतद्दोषान् दृष्टा 'तओ संजयामेव' ततः तस्मात कारणात संयत मेव यतनापूर्वकमेव 'गामाणुगामं दुइज्जिज्जा' ग्रामानुग्रामम् ग्रामाद् ग्रामान्तरं गच्छेत् ।। २१॥ मूलम्-से भिक्खू वा भिक्खुगी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से जवसाणि वा सगडाणि वा रहाणि या सचकाणि वा परचकाणि वा 'हरियाणि वा' हरित वर्णवाले सचित्त वनस्पति बिशेषों को या अन्य किसी पौधे को 'अरलंबिय अवलंबिय' बारबार अबलम्बन का सहारा करके 'उत्तरिज्जा' उस मार्ग को पार करेगा और 'जे तत्थ पाडिवहिया उद्यागच्छति' जो कोई उसमार्ग के मध्य में राही बटोही पथिक मिलेगे उनसे भी सहारे के लिये 'ते पाणि जाइज्जा' हाथका अवलंबन की याचना करेगा और 'जाइत्ता हस्ताय. लम्बन की याचना करके अर्थात् उन राहगीरों का हाथ पकडकर 'तओ संजयामेव अवलंबिय अवलंबिय उत्तरिज्जा' यतना पूर्वक ही हस्तायलंबन-पूर्वक उस मार्ग को पार करेगा इसलिये इन दोषों को देखकर अनेक विडंबना होने से उस वकिला होने से इस वकिला वगैरह से युक्त सरल मार्ग को छोडकर ही गुरुभूत मार्ग से ही 'तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जिज्जा' संपम पूर्वक हो एक ग्राम से दूसरे ग्राम जाना चाहिये अन्यथा उक्तरोति से जाने पर संयम आत्म विराधना होगी । सू० २१ ।। णाणि वा' पनस्पति विशेष ३५ गहनाने अथवा 'हरियाणि वा' रित १९ सायत्त वनस्पति विशेषाने 'अवलंविय अवलंविय' पार पा२ अ न शने 'उत्तरिज्जा' से भाग पा२ ४२२. अने. 'जे तत्थ पाडिव हिया उवागच्छंति' रे । ये भाभा भुसा३२ पटेमा भणे ते पाणी जाइज्जा' तेमनी पांसे सहाय भाटे तमना साथीना सहारानी भाग ४२ अने 'जाइत्ता' तापमाननी यायन। ४ीने अर्थात् से पटेभागुयाना उथ ५४ीने 'तओ संजयामेव' यतना पूर्व 'अवलंबिय अवलंबिय' तापमान 3री हरीन 'उत्तरिज्जा' से भागने पा२ ४२शे. तेथी 24 घोषाने धर अने: ५२नी મુશ્કેલી હોવાથી એ વખ કિલા વિગેરે વાળા સરળ માને છેડીને લાંબા માર્ગેથી જ 'संजयामेव गामाणुगाम दूइज्जिज्जा' सय ५५४ मे मयी मारे ॥ ४ सन्यथा બીજી રીતે જવાથી સંયમ આત્મ વિરાધના થાય છે. એ સૂ. ૨૧ છે श्री माया सूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy