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________________ आचारांगसूत्रे ५२६ उद्दिश्य अवनम्य अवनम्य उन्नम्य उन्नम्य निघ्यायेत् स खलु परः नौगतः नौगतम् वदेत्आयुष्मन्तः ! श्रमणाः ! एai aratri नावम् उत्कर्ष वा व्युत्rea ar area वा, रज्ज्वा वा गृहीत्वा आकर्षस्त्र । नो सतां परिज्ञां परिजानीयात् तृष्णीकः उपेक्षेत । सू० १२|| टीका - नौका सम्बन्धमधिकृत्य पुनः प्रकारान्तरेणे वक्तुमाह-' से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' भिक्षु भिक्षुकीचा 'नावं दुरूहमाणे' नावम् आरोहन् 'नो नावाओ पुरओ दुरुहिज्जा ' नो नावः पुरतः - अग्रतः आरोहेत्, 'नो नावाओ मग्गओ दुरूहिज्जा' नो नावः मार्गतः पश्चाद् भागतः आरोहेत्, 'नो नावाओ मज्झओ दुरूहिज्जा' नो नावः मध्यतः मध्यभागेन आरोहेत् तथाssरोह सति प्राण बाधासंभवात् 'नो बाहाओ पगिज्झिय परिज्झिय' बाहू - भुजौ प्रगृह्य प्रगृह्य वारंवारम् ऊर्ध्वम् उत्थाप्य 'अंगुलियाए उद्दिलिय उद्दिसिय' अङ्गुल्या - उद्दिश्य उहि - श्य पुनः पुनः निर्दिश्य 'ओणमिय ओणमिय' अवनम्य अवनम्य - अङ्गुल्याः पौनःपुन्येन अवनमनं कृत्वा 'उन्नमिय उन्नमिय' उन्नम्य - उन्नम्य - वारं वारम् उन्नमनं विधायेत्यर्थः 'निज्झा फिरभी प्रकारान्तर से नौका संबंधी विषय का प्रतिपादन करते हैं टीकार्थ- 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा नावं दुरूहमाणे' यह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी नौका पर चढते हुए- 'नो नावाओ पुरओ दुरूहिजा' - नौका के आगे के भाग में नहीं चढे एवं - 'नो नावाओ - मग्गओ दुरूहिज्जा' - नौका के पीछे भाग से भी नहीं चढे तथा 'नो नावाओ मज्झओ दुरूहिज्जा' नौका के मध्य भाग से भी नहीं चढे क्योंकि नौका के अग्र भाग एवं पीछे के भाग या मध्य भाग से चढने पर प्राण की बाधाका भय रहता है इसलिये आगे और पीछे या मध्यभागसे साधु को और साध्वीको नावपर नहीं चढ़ना चाहिये और - 'नो बाहाओ परिज्झिय परिज्झिय' और बाहुको बारबार उपर उठाकर और 'अंगुलिशए उहिसिय उद्दिसिय' अङ्गुलियों से निर्देशकर तथा 'ओणमिय ओणमिय' अङ्गुलिको बराबर नमाकर तथा 'उन्नमिय उन्नमिय' बारबार अंगुलियों को आगे बढाकर भी नहीं देखना चाहिये क्योंकि इस હવે પ્રકારાન્તરથી નૌકા પર બેસવા સ'ખ'ધી વિષયનું પ્રતિપાદન કરે છે.- टीडार्थ' - 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूर्वोस्त साधु ाने साधीयो 'नात्रं दुरूहमाणे' नौ पर यढतां 'नो नावाओ पुरओ दुरूहिज्जा' नौअना आगणना लागथी नौठा ५२ यढवु' नहीं' 'नो नावाओ मग्गओ दुरूहिज्जा' नौमाना पाछजना लागभां थढवु नहीं' तथा 'नो नावाओ मज्झओ दुरूहिज्जा' नौजना मध्य लागभांथी पशु यढवु नहीं કેમ કે નૌકાને આગળના ભાગ અને પાછળના ભાગ અને મધ્યભાગથી ચઢવાથી પ્રાણિક હિંસાના ભયરહે છે. તેથી આગળ પાછળ અને મધ્ય ભાગથી સાધુ અને साध्वीये नाव ५२ यढवु' नहीं 'नो बाहाओ पगिज्झिय 'पगिज्झिय' हाथने वारंवार या श्रीने 'अंगुलियाए उद्दिसिय उद्दिसिय' भने भांगजीयोथी निर्देश हरीने 'ओणमिय ओणमिय' मांगजीयाने वारंवार नमावीने 'उन्नमिय उन्नमिय' यांगजीये। वारंवार मागण श्रीने पशु 'निज्जाइज्जा' लेवु नहीं भ है आ रीते वारंवार हाथने या १२पाथी શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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