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________________ ५२४ आचारांगसूत्रे अर्द्धयोजनमर्यादायाः 'अप्पतरे वा भुज्जतरे या' अल्पतरं वा भूयस्तरं वा अनुपातेन प्रवह माणां नायम् 'नो दूहिज्जा गमणाए' नो आरोहेत् गमनाय गन्तुम नो नावि आरोहणं कुर्यात, अपितु 'से भिक्खू चा भिक्खुणी वा सभिक्षु र्वा भिक्षुकी वा 'पुवामेव तिरिच्छ संपाइम' पूर्वमेव नावारोहणात् प्रागेव तिर्यक् संपातिनीम्-तिरश्चीनतया जलोपरि वाहि. नीम् 'नावं जाणिज्जा' नावम् जानीयात् 'जाणित्ता से तमायाए' ज्ञात्वा स साधुः ताम् नायम् आदाय सम्यग् अवबुध्य मनसि आरोढुमवधायें 'एगंतमवक्कमिज्जा' एकान्तम् अप क्रामेत् गच्छेत् 'एगतमवकमित्ता' एकान्तम् अपक्रम्य 'भंडगं पडिले हिज्जा' भाण्डकम्अमत्रं पात्रादिकम् प्रतिलिखेत् प्रतिलेखनं कुर्यात् 'पडिले हित्ता' प्रतिलिख्य पात्रादि प्रतिलेखन' विधाय 'एगओ भोयणभंडगं करिज्जा' एकत:-एकस्मिन् भागे भोजनमाण्डकम्धीमी बहने वाली हो या 'भुज्जतरे या' अत्यंत तेजी से बहने वाली हो या इस प्रकार की नौकापर 'णो दुरुहिजा गमणाए' गमन करने के लिये नहीं चढे अर्थात् साधु और साध्वी एक ग्राम जाते हुए रास्ते के मध्य में यदि कोई अगम अथाह अगाध नदी आ जाय तो उस नदी को नौका पर चढकर एकाएक पार नहीं करे ‘से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' अपितु वह साधु और साध्वी नौका पर चढने से पहेले ही 'तिरिच्छसंपाइमं नावं जाणिज्जा' तिरछी बहने वाली नौका को जानले अर्थात् देख भाल करले और 'जाणित्ता' उस नौका को देख भाल कर अच्छी तरह समझ बूझकर अर्थात् उस नौका पर चढने का विचार कर 'से तमायाए एगंतमवक्कमिजा' एकान्त में चला जाय और 'अवक्कमित्ता' एकान्त में जाकर 'भंडगं पडिलेहिज्जा' अपने भाजनपात्रादि को प्रतिलेखन करे और 'पडिलेहिता, एगओ भोयणभंडगं करिज्जा, करित्ता' प्रतिलेखन करके एक भागमें भोजन पात्रको रक्खे और भोजन पात्रको एक तरफ रखकरअर्धा यानी भहाथी पापाजी जाय अथ। 'अप्पतरे वा' धीमी गतिथी पाणी डाय है 'भुज्जतरे वा' घी ते४ गतिथी पाणी डाय ‘णो दुरुहिज्जा गमणाए' मा। પ્રકારની નૌકા પર ગમન કરવા માટે ચઢવું નહીં અર્થાત્ સાધુ કે સાધ્વીને એક ગામથી બીજે ગામ જતાં રસ્તામાં જે કંઈ અગાધ પાણીવાળી નદી આવે તે એ નદીને પાર ४२५। मेटा नो। ५२ ५४ नही ५२'तु ‘से भिक्खू वो भिक्खुणी वा' ते साधु ? साली 'पुवामेव' नो। ५२ यता पडेय 'तिरिच्छसंपाइमं 'नावं जाणिज्जा' तिरछी rivी मर्थात् तथावाजी नी. omel aवी अर्थात् पी मने 'जाणित्ता' से मोडल परामर ने सारी शते समलने से ना। ५२ यढपानी पियार ४शन से तमायाए साधु सापीये तर सधन 'एगंतमवक्कमिज्जा' मेन्तमा या "यु भने 'अपकमित्ता' सान्तमा ने 'भंडगं पडिलेहिज्जा' पोताना नानु प्रतिमान ७२ भने 'पडिलेहित्ता' पात्रहनु प्रतिमन शर 'एगओ भोयणभंडगं करिज्जा' से श्री. ॥॥२॥ सूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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