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________________ ४०० आचारांगसूत्रे वा' तद्यथा-आयसानि वा (आदेशनानि वा) 'आयतणाणि वा' आयतनानि वा 'देवकुलाणि वा' देवकुलानि वा 'जाव भवणगिहाणि वा' यावत्-सभा वा प्रपा वा सुधाकर्मान्तानि वा वर्द्धकर्मान्तानि वा वल्कलकर्मान्तानि या श्मशानकर्मान्तानि वा शून्यागारकर्मान्तानि वा गिरिकान्तानि वा कन्दराकर्मान्तानि वा शैलोपस्थापनकर्मान्तानि वा भवनग्रहाणि वा 'सव्वाणि ताणि' सर्वाणि तानि इमानि भवनगृहान्तानि 'समणाण निसिरामो' श्रमणानां जैन. मुनीनाम् जैनमुनिभ्यः इत्यर्थः निसृजामः ददामः 'अवियाई वयं पच्छा' अपि च वयं पश्चात् 'अप्पणो सयट्ठाए चेइस्सामो' आत्मनः स्वार्थाय निजायं चेतयिष्यामः निर्मास्यामः करिष्याम इत्यर्थः तान्याह-'तं जहा-आएसणाणि वा' तद्यथा-आयसानि वा (आदेशनानि वा) "आयतणाणि वा' आयतनानि वा 'देवकुलाणि वा' देवकुलानि वा 'जाव भवणगिहाणि वा' यावत्बनवाये हैं-'तं जहा' जैसे कि 'आएसणाणि या' आयस लोह के गृह है या 'आयतणाणि वा' आरस पत्थर के गृह है, अथवा-'देवकुलाणि वा' देवायतन मठमन्दिरो वगैरह हैं या देवकुल है या 'जाय भयणगिहाणि वा' यावत् सभा. गृह है या प्रपा-पानीय शाला है या सुधा चुना को परिस्कार गृह है या चर्ममय चरसमशक बनाने का गृह है या वल्कल छाल की टोपरी वगैरह बनाने का घर है या श्मशान गृह है अथवा शून्य अगार के रूप में बनाये हुए घर है या पर्वत के ऊपर बनाये हुए घर है, या कन्दरा-गुफा के अन्दर बनाये हुए घर या पत्थरों के बनाये हुए मण्डप है या भवन गृह है-'सव्याणि ताणि समणाणं निसीरामो' उन सभी गृहों को श्रमण जैन साधु मुनिगण के लिये देदेते हैं और बाद में 'अवियाइं वयं पच्छा अपणो सअट्टाए चेइंस्सामो' अपने लिये बनवा लेंगे'तं जहा-आएसणाणि वा, आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा जाव भवणगिहाणि वा' जैसे कि-आयम लोहमय गृहों का या आरस पत्थरों के बनाये हुए गृहों 'तं जहा' २॥ है-'आएसणाणि बा' पारस पत्थना ५२ अथवा 'आयतणाणि वा' सानिमित घर ५५५। २।यतन थेट , म मदीर विगैरे अथवा 'देवकुलाणि वा' है। 28 2424। 'जाव भवणगिहाणि वा' यावत् सभा पानीय गृह म२ युना પકવવાના ગૃહ અથવા ચામડા મશક વિગેરે બનાવવાના ગૃહ અથવા વલ્કલના વસ્ત્રો કે સાદડી વિગેરે બનાવવાને ગૃડ અથવા સ્મશાન ગૃહ અથવા શૂન્ય ગૃહ એટલે કે એક ન નિવાસ માટેનું મૃડ અથવા પત્થરના બનાવેલ મંડપ કે પર્વત ઉપર બનાવેલ ઘર અથવા शुानी २ अनावस ३२ था सपन गृह छे ते 'सव्वाणि ताणि समणाणं निसीरामो' એ બધા ગૃહો જૈનમુનિયોના નિવાસ માટે આપીએ છીએ અને અમારે માટે ફરી બનાવી सशु तं जहा' ते ॥ प्रभारी 'आएसणाणि वा' सारस पत्थरना भान अथ। 'आयत णाणि वा' वाडमय । अथवा मायतन। भ3 महि। विगैरे अथवा “देवकुलाणि या' १५ गई। 20 'जाव भवणगिहाणि वा' या५त् समार। अथवा पानीय गृहे। अथवा युने। श्री आया। सूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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