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________________ ३७८ आचारांगसूत्रे 'अयं उवचरए' अयम् उपचारकः तत्परिवारको वा वर्तते 'अयं हता' अयं हन्ता-घातकः, 'अयं इत्यमकासी' अयमत्र इत्थम् अकार्षीत्' इत्येवं किमपि वागव्यापारं न कुर्याद, यतस्तस्य चौर स्य व्यापादनं स्यात्, तमेव वा साघु व्यापादयेदित्यादिदोषाः स्युरिति, अथ च 'तं तवस्सि भिक्खं अतेणं तेणंति संकइ' तं तपस्विनम् भिक्षुम् अस्ते नम् स्तेनमितिकृत्वा शङ्केत तथा च कदाचित् साधुमेव चौरं मत्वा मिथ्याप्रचारं कुर्यात् तथासति संयमात्मविराधना स्यात् तस्मात् 'अहभिक्खूणं पुव्योवदिट्टा एस पइण्णा' अथ भिक्षूणाम् साधूनां कृते पूर्वोपदिष्टा पूर्व तीर्थकृता भगवता महावीरेण उपदिष्टा एपा संयमपालनविपयिणी प्रतिज्ञा 'एस हेऊ' एषहेतुः 'जाव' यायत्-एतत् कारणम्, एष उपदेशः 'जंतहप्पगारे' यत् तथाप्रकारे सागारिकसम्बद्धे 'उक्स्सए' उपाश्रये 'णो ठाणं वा सेजं वा नितीहियं वा' नो स्थानं वा चोरने द्रव्य रुपये पैसे वगैरह को चुराया है या किसी दूसरे ने ही चुराया है ऐसा भी नहीं बोले एवं 'तस्स हडं ' इसी गृहस्थ का धन दौलत वगैरह चुरा लिया है या 'अण्णस्स वा हर्ड' दूसरे का ही धन दौलत वगैरह चुरा लिया है ऐसा भी नहीं बोले, एवं-'अयंतेणे' यही चोर है और 'अयं उवचरए' यह उस चोरका उपचारक है अर्थात् परिचारक है ऐसा भी नहीं बोले, तथा 'अयं हंता अयं इत्थमकासी' यहीं घातक मारने वाला है अथवा इसने ही यहां पर से) देकर चुराया है ऐसी भी बात नहीं बोले क्योंकि ऐसा बोलने से उस चोर की हत्या कर दी जायेगी या वह चोर उसी साधु को मार डालेगा इत्यादि बहुत से दोष होगें और-तं तवस्सिं भिक्खु अतेणं तेणंति संकइ, अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्टा एस पइण्णा एस हेऊ जाव' उसी तपस्वी भिक्षुक साधुको जो के चोर नहीं है चोरके रूपमें संदेह करेगा, इसलिये साधु के लिये पहले ही भगवान श्रीमहावीरस्वामीने संयम नियम पालन करने की प्रतिज्ञा बतलायी है और यावत् उपदेश भी दिया है कि-'जं तहप्पगारे उबस्सए'-'इस प्रकार के सागाउ तथा 'तस्स हडं अण्णस्स वा हडं' से उत्थना धन हसत विगैरे यायु छ । मीना धन हसत विगेरे यारी साधु छ मेम ५९ हेयु नही. तथा 'अयं तेणे, अयं उवचरए' मा यार छ भने ३१ मे यार। 8५।२४ अर्थात् महार छे. सम ५५ उयु नही. तथा 'अयस्ता' मारवाया घात छ. 'अयं इत्थमकासी' 4241આણે અહીં ખાતરીયું મૂકીને ખાતર પાડેલ છે એમ પણ કહેવું નહીં. કેમ કે એમ કહેવાથી એ ચેરની લેકે હત્યા કરે અગર એ ચોર સાધુને મારી નાખે વિગેરે ઘણું होषांना प्रादुर्भाव थशे. तथा 'तं तवस्सि भिक्खं अतेणं तेणंति संकइ' से तपस्वी भिक्षु साधुन रे यार नथा तेरे यार तरी भानशे 'अइ भिक्खूगं पुव्योवदिवा एस पइण्णा' તેથી સાધુ માટે પહેલેથી જ ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામીએ સંયમ નિયમ પાલન કરવાની प्रतिज्ञा ४ छ. 'एस हे ऊ जाव' को साधुपयानो रतु मन १२६५ यात् ५१२॥ ५५ श्रीमायागसूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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