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________________ - मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंघ २ उ. ११ सू० ११४ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् २९५ मूलम्-अहावरा दोच्चा पिंडेसणा, संसट्टे हत्थे संसट्टे मत्तए तहेव दोच्चा पिंडेसणा इति दोच्चा पिंडेसणा ॥१० ११४॥ छाया-अथ अपरा द्वितीया पिण्डैषणा, संसृष्टो हस्तः, संसृष्टम् अमत्रम्, तथैव द्वितीया पिण्डैषणा, इति द्वितीया पिण्डैषणा ॥ सू० ११४ ॥ टीका-गच्छान्तर्गतानां साधूनां कृते प्रथमा पिण्डैषणा पूर्व प्रतिपादिता अथ तेषामेव कृते द्वितीयां पिण्डैषणां प्रतिपादयितुमाह-'अहावरा दोच्चा पिंडेसणा' अथ अपरा-अन्या द्वितीया पिण्डैषणा प्रतिपाद्यते-'संसटे हत्थे संसटे मत्तए' संस्पृष्टः ग्राह्यपदार्थादिना उपलिप्तो हस्तः, एवं संसृष्टम्-ग्राह्यपदार्थादिना उपलिप्तम् अमत्रम् पात्रम् स्यात्, 'तहेव दोच्चा पिंडेसणा' तथैव-प्रथमपिण्डैश्णावदेव अवशिष्टवक्तव्यता विषयिणी द्वितीया पिण्डेषणा अवगन्तव्या तथा च द्रव्यं तावत् प्रथमपिण्डैषणायामपि सावशेष वा स्यात् निरवशेषं वा तत्र यद्यपि निरवशेषद्रव्ये पश्चात्कर्मदोषः संभाव्यते तथापि गच्छस्य बालादिव्याप्तत्वात् तनिषेधो न कृतः, एवं द्वितीयपिण्डैषणायामपि द्रव्यं तथैवागन्तव्यम् ॥ सू० ११४॥ चुकी है अब उनके लिये दूसरी पिण्डैषणा को बतलाते हैं टीकार्थ-'अहावरा दोच्चा पिंडेसणा, संसट्टे हत्थे संसटे मत्तए' अथ-इस के बाद अपर-अन्य अर्थातू दूसरी पिण्डैषणा को कहते हैं-संसृष्ट ग्राह्य पदार्थ वगैरह के साथ उपलिप्त हस्त-हाथ और संसृष्ट-ग्राह्य पदार्थ वगैरह के साथ उपलिप्त अमत्र-पात्र भी हो तो 'तहेच दोच्चा पिंडेसणा' उस को दसरी पिण्डे. षणा कहते हैं और पूर्वोत्तरीति से प्रथम पिण्डैषणा के समान ही इस दूसरी पिण्डैषणा में भी अवशिष्ट वक्तव्यता समझनी चाहिये जैसे कि प्रथम पिण्डैष. णा में द्रव्य सावशेष और निरवशेष पतलाया गया है उन में ययपि निरवशेष द्रव्य में पश्चात्कर्म दोष की संभावना रहती है फिर भी गच्छ में बाल वृद्ध सभी होते हैं इसलिये उसका निषेध नहीं किया गया है, इसी तरह दूसरी पिण्डैषणा में भी द्रव्य सावशेष और निरवशेष समझना चाहिये, इस प्रकार તેમના માટે બતાવવામાં આવે છે.__Axt-'अहावरा दोच्चा पिंडेसणा' वे मी पिउ१५। ४ामा मावे छे. संसट्टे हत्थे संसट्टे मत्तए' पाडय पहा विरेनी साथै Sular 14 राय भने ससूटप्राय पहा विरेनी साथै ७५सियत पात्र य तहेष दोच्चा पिडेसणा' तो तेने भी પિડ પણ કહેવાય છે અને પૂર્વોક્ત રીતે પહેલી પિંડેષણ પ્રમાણે જ આ બીજી પિ વૈષણાનું પણ બાકીનું કથન સમજી લેવું જેમ કે પ્રથમ પિડેષણામાં દ્રવ્ય સાવશેષ અને નિરવશેષ બતાવેલ છે. તેમાં જે કે નિરવશેષ દ્રવ્યમાં પશ્ચાત્ કર્મ દોષની સંભાવના રહે છે તે પણ ગચ્છમાં બાલ, વૃદ્ધ બધા હોય છે તેથી તેને નિષેધ કરેલ નથી. તે જ રીતે બીજી પિકે श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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