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________________ ११०० आचारांगसूत्रे प्राणातिपातं कुर्यात्-(करोमि) नाहं करिष्यामि कारयेत् (कारयामि) कारयिष्यामि अनुमोदयेत् (अनुमोदयामि वा' अनुमोदयिष्यामि वा 'जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं' यावद् जीव-जीवनपर्यन्तम् , त्रिविधम्-करण-कारण-अनुमोदनरूपं त्रिविधं प्राणातिपातं त्रिविधेन त्रिप्रकारेण 'मणसा वयसा कायसा' मनसा वचसा कायेन तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि' हे भदन्त ! तस्य प्राणातिपातस्य प्रतिक्रामामि तस्मात् पापाद् का 'नेव सयं पाणाइवायं करिजा' में स्वयं प्राणातिपात को नहीं करूंगा एवं मैं नहीं करवाऊंगा और सब प्रकार के प्राणातिपात को करने के लिये मैं किसी को भी प्रेरणा भी नहीं करूंगा याने सभी प्रकार के प्राणातिपाति को मैं स्वयं भी नहीं करूंगा और दूसरों के द्वारा भी नहीं करवाऊंगा और 'अणुमोदिज्जा वा' प्राणातिपात को करते हुए का अनुमोदन समर्थन भी नहीं करूंगा अर्थात 'जावज्जीवाए' यावद् जीव याने जीवन पर्यन्त 'तिविहं तिविहेणं' त्रिविध याने करण-कारण और अनुमोदन अर्थात् स्वयं करना दूसरों के द्वारा करवाना और करते हुए का समर्थन करना इस प्रकार के विविध प्राणातिपात को विविध याने तीन प्रकार से 'मण सा वयसा कायसा' मनसा वचसा कायेन अर्थात् मन वचन एवं काय से 'तस्स मंते ! पडिकमामि' उस प्राणातिपात को प्रतिक्रमण करता हूँ अर्थात् इस प्रकार के पाप कर्मरूप प्राणातिपात से निवृत्त होता हूँ और इस प्रकार के सूक्ष्म स्थूल त्रस स्थावर जीव विषयक प्राणातिपात को मैं अपने आत्मा और गुरु की साक्षिता में याने अपने सामने और गुरु के सामने 'निंदामि' निंदा करता हूँ और 'गरिहामि' गर्हणा घृणा भी करता हूं और 'अप्पाण वोसिरामि' इस प्रकार के सूक्ष्म स्थूल त्रस स्थावर जीव जन्तु स्था१२ स य मा मा सोनु 'नेव सयं पाणाइवाय करिज्जा' पाते प्रतिपात रीश नही मने 'कारिज्जा' भी। भाईत ५१ मा ४ प्रश्न प्रायतिपातनहुँ ४२वीश नही. तथा 'अणुमोदिज्जा वा' अन से मा ५२न। પ્રાણાતિપાત કરવા માટે હું કેઈને પ્રેરણું પણ કરીશ નહીં. અર્થાત્ બધા પ્રકારના પ્રાણાતિપાતને હું સ્વયં કરીશ નહીં. અને બીજાઓની માર્ફત કરાવીશ પણ નહીં અને प्रायतिपात ४२नारामानु मनुमान (समर्थन) ५९] ४शश नही. 'जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं' न५-त विविध सेट ३२९, ३२ मन अनुभाहन अर्थात् पाते ७२j કે બીજા પાસે કરાવવું અથવા કરનારાનું અનુમોદન કરવું આ પ્રકારના ત્રણ પ્રકારના प्राथातिपात विविध अर्थात् प्रणे हाथी गेट 'माणमा वयसा कायसा' भन, वयन छायथी 'तस्स भंते ! पडिकमामि' से प्रतिपातनु प्रतिभार ४३ छु. अर्थात् माया रना पा५४३५ प्रातिपतिथी निवृत्त था छु: तथा 'निंदामि गरिहामि' मा પ્રકારના સુકમ અગર સ્થલ ત્રસસ્થાવર જીવ સંબંધી પ્રાણાતિપાતની હું મારા આત્માથી ગુરૂની સાક્ષીએ અર્થાત્ પિતાની સામે અને ગુરુની સામે નિંદા કરૂં છું. અને ગહણ श्री मायारागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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