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________________ १०७८ आचारांगसूत्रे णं वेसमणे देवे' ततः खलु-आभरणालंकारावतारणानन्तरम् वैश्रमणो देवः 'जन्नुवायपडि श्रो' जानुपादपतितः-जानुपादौ अवनम्य विनयभक्तिपूर्वकम् 'भगव श्री महावीरस्स' भगवतो महावीरस्य 'हंसलक्खणेणं पडेणं' हंसलक्षणेन -हंसस्वरूपेण-हंसात् श्वेतेन हंसचिन्होपेतेन वा पटेन वस्त्रेण 'आभरणालंकारं पडिच्छइ' आभरणालंकारम् शरीरादवतारितम् भूषण नातम् प्रतीच्छति- गृह्णाति, 'तओणं समणे भगवं महावीरे' ततः खलु-आभरणालंकारावतारणा. नन्तरम् श्रमणो भगवान् महावीरः 'दाहिणणं दाहिणं' दक्षिणेन-दक्षिण हस्तेन, दक्षिणम्सुसजित शिक्षिका से उतर कर एक भव्य सिंहासन पर बैठ कर अपने शरीर से पूर्वाभिमुख होकर बैठे हुए भगवान् श्री महावीर स्वामी ने स्वयं नाना प्रकार के आभरणों तथा अलंकार जातों को याने अनेक प्रकार के भूषणों को उतारा, अब अपने शरीर से नाना प्रकार के आभरण अलंकारों को उतारने के बाद आगे की वक्तव्यता का प्रतिपादन करने के लिये खुलाशाकर बतलाते हैं-'तो णं वेसमणे देवे' ततः उसके बाद याने अपने शरीर से नानाप्रकार के आभरण अलंकार जात को उतारने के बाद वैश्रमण देव अर्थात् वैश्रमण नामके देवविशेष अपने-'जन्नुवायपडियो'-जानु पादों को अवनमित कर याने विनय भक्ति श्रद्धा पूर्वक अपने घुटनों और पादों को नीचे झुकाकर-'भगवओ महावीरस्स' भगवान् श्री महावीर स्वामी के शरीर से उतारे हए उन आभरणालंकारों को-'हसलक्ख. णेणं पडेणं'-हंसके समान अत्यंत सफेद पट से अर्थात् हंसके चिह्न से युक्त अत्यंत स्वच्छ वस्त्र में-'आभरणालंकारं पडिच्छई'-ग्रहण करते हैं-'तओ णं' वैश्रमण देव के द्वारा अत्यंत स्वच्छ वस्त्र में भगवान् श्री महावीर स्वामी के शरीर से उतारे हुए भूषण जातको ग्रहण करने के बाद-'समणे भगवं महावीरे' श्रमण भगवान् महावीर स्वामीने-'दाहिणेणं दाहिणं' दक्षिण हस्त से याने दाहिने हाथ से दक्षिण પ્રકારના મણિ રન અને સુવર્ણાદિથી સજજીત ૫ લખી પરથી ઉતરીને એક ભવ્ય સિંહાસન પર પૂર્વાભિમુખ બેસીને પોતે શરીર પર પહેરેલા આભૂષણોને ઉતારી નાખ્યા. હવે પિતાના શરીર પરથી આભૂષણોને ઉતાર્યા પછીના કર્તવ્યનું સૂત્રકાર કથન કરે छ.- 'तओणं वेसमणे देवे' मावान् श्रीमहावीर स्वामी पोताना शरी२ ५२यी आभूषणे। Suी ५७ वैअभएये 'जन्नुवायपडिओ' पोताना तनुमान नमावान से विनयAls श्रद्धापूर्व ४ पोताना अन्न धु। म पगाने नमावीर 'भगवओ महावीरस्स हंसलक्खणेणं पडेणं' नियत द्वापूर्व पीत भगवान श्रीमहावीर स्वामीना शरीरथी ઉતારેલા એ આભૂષણે અને અલંકારને હંસ જેવા અત્યંત સફેસ પરથી અર્થાત હંસના चिह्नथी युद्धत सत्यत स३६ भने २१२७ पखमा 'आभरणालंकारं पडिच्छइ' से सामषो। ने २७या. 'तो गं समणे भगवं महावीरे' ते ५७ी मेट वैश्रम हेवे भगवान् શ્રી મહાવીર સ્વામીના શરીર પરથી ઉતારેલા આભૂષણોને સ્વચ્છ વસ્ત્રમાં લઈ લીધા પછી श्रीमायारागसूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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