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________________ १०५८ आचारांग सूत्रे कारयित्वा 'गंथिमवेढिमरिमसंघाइ मेणं' ग्रन्थिन वेष्टिमपूरिमसंघातिमेन - ग्रथित-वेष्टितपूरिम- संघातिमरूप चतुष्टय प्रकारकपुष्पनिर्मितेन 'मल्लेणं' मालवेन 'कप्परुक्खमिव समलंकरेइ' कल्पवृक्षमिव- कल्पतरुमित्र भगवन्तं महावीरं समलङ्करोति - भूषयति शक्रो देवेन्द्रो देवराज इति पूर्वेणान्वयः समलं करेत्ता' समलङ्कृत्य - भूपयित्वा 'दुच्चपि महया वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहण' द्वितीयमपि द्वितीयवारमपि महता - विशाले वैक्रियसमुद्घातेन समवहन्यतेवैक्रियसमुद्घात करोतीत्यर्थः ' समोहणित्ता' समवहत्य - वैक्रियसमुद्वातं कृत्वा 'एगं महं चंदप' एकां महतीं चन्द्रप्रभाम् चन्द्रमानाम्नीम् 'सिविधं सहस्सवाहणियं' शिबिकाम्उडरयणमालाउ आविधावेइ' पट्ट मुकुट रत्नमाला याने कटिसूत्र और मौलिमुकुट एवं पद्मरागमणि - इन्द्रनीलमणि- मरकतमणि वगैरह मणियों से खचित माला भी गले में भगवान् श्रीमहावीर स्वामी को भवनपति वानव्यन्तर ज्योतिषिक एवं वैमानिक देवों ने तथा शक्रदेवेन्द्र देवराज ने पहनाया 'आवि धावित्ता' शक देवेन्द्र देवराज ने भगवान् श्रीमहावीर स्वामी को गले में अनेक विशिष्ट मालाओं को पहनाकर 'गंथिनवेदिमरिमसंघाइमेणं मल्लेणं ' ग्रंथिम वेष्टिम पूरिम और संघातिम रूप चार प्रकारके पुष्पों से निर्मित माल्य से 'aryara मिव समलंकरेह' कल्प वृक्षके समान भगवान् श्रीमहावीरस्वामी को समलंकृतकिया 'समलंकरेत्ता' समलंकृत करके और देवेन्द्र देवराज शक ने या भवनपति वानव्यन्तर ज्योतिषिक वैमानिक देवोंने 'दुच्चपि महया वेउव्वियसमुग्धाएणं' दूसरे बार भी महान् वैक्रिय समुद्घात से 'समोहण' वैक्रिय समुद्घात किया और 'समोहणित्ता' वैक्रिय समुद्घात करके ' एगं महं' एक महानू 'चंदप्पहं सिवियं' चंद्रप्रभा नामकी शिक्षिका दोला पालकी को 'सहस्सवाहणियं विव्वति' विकुर्वित किया याने वैक्रिय મુકુટ રત્નમાળા અર્થાત્ કઢેરો તથા માથાને મુગટ તથા પદ્મરાગમણિ ઈંદ્રનીલમણી ભરત મણિ, વિગેરે મણિચેાથી જડેલ માળા ભગવાનના ગળામાં એ ભવનપત્યાદિ દેવાએ तथा देवेन्द्र देवराद्रे पराव्या. तथा आविधावित्ता' देवेन्द्र हेवराद्रे भगवान श्री महा वीर स्वामीना गणाम अनेह प्रहारनी विशिष्ट शोला संपन्न भाषा पशवीने 'गंथिमवेढिमपुरिमसंघाइमेणं मल्लेणं' थिम, वेष्टिम, यूरिम अने संधातिभ से यार प्रहारना पुष्पोथी मनावेसी भागासोथी 'कप्परुक्खमिव' उदयवृक्ष सरणा भगवान श्री महावीर स्वाभीने ' समलंकरेइ' असत. अने 'समलंकरिता' मे प्रभा भगवान् श्रीमडा વીર સ્વામીને સમલંકૃત કરીને એ દેવેન્દ્ર દેવરાજ ઇંદ્ર અથવા ભવનપતિ વાનભ્ય તર ज्योतिषि वैमानि देव थे. 'दोच्चं पि महया वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहणई' मी वर्णत या महान वैयि समुद्घातये 'समोहणित्ता' वैयि समुद्घात उरीने 'एगं महं चंदप्प सिवियं' से महान यद्रप्रभा नामनी शिमिश पासी ने 'सहस्वाहिणिय' विउच्वंति' હજાર પુરૂષો દ્વારા લઈ જવાય તેવી પાલખી વૈક્રિય સમુાતથી બનાવી. તથા તે પાલખી શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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