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________________ आचारांगसूत्रे एणं' त्रिपटोलतिक्तके न साधिकेन-लक्षसुवर्णमुद्राधिक मूल्यकेनेत्यर्थः 'सीतेण' शीतेन-अत्य न्तशीतलेन 'गोसीसरत्तचंदणेण अणुलिंपई' गोशीर्षकरक्तचन्दनेन-गोरोचनचन्दनेनेत्यर्थः अनुलिम्पति-अनुलेपनं करोति 'अणुलिपित्ता' अनुलिप्य गोरोचनरक्तचन्दनेन अनुलेपनं विधायेत्यर्थः 'ईसि निस्सासवायवोज्झं' ईषद् निःश्वासवातवाह्यम्-किश्चिद् श्वासपवनवहनयोग्यम् लेशमात्र निःश्वासवायुना उइडयनयोग्यमित्यर्थः एतादृशम् "वरनयरपट्टणुग्गयं' वरनगरपत्तनोदगतम्-विशिष्ट नगरनिर्मितम् 'कुसलनरपसंसियं कुशलनरप्रशंसितम्-निपुण शिल्पि. जनद्वारा प्रशंसितम् 'अस्सलालापेलवं' अश्वलाला पेलवम्-घोटकमुख फेनवत् श्वेतं मनोहरश्च 'छेयारियकणगखइयंतकम्म' छेकाचार्यकनक खचितान्तकर्म-शिल्पविद्याविशारद विद्वज्जनद्वाराप्रकार के 'तिपडोलति त्तिएण' त्रिपटोल के समान तीते याने कडवे और साधिक अर्थात् एक लाख सुवर्ण मुद्राधिक मूल्य वाले 'सोतेण गोसीस' अत्यंत शीतल गोशीर्षक 'रत्तचंदाणेणं' रक्त चंदन से अनुलेपन करते हैं और 'अणुलिंपित्ता गोशीर्षक रक्त चन्दन से अनुलेपन कर 'इति निस्सासवायवोज्झं किश्चित अर्थात लेशमात्र निश्वासवात याने जरा सा लेशमात्र ही श्वास पवन से भी उड़ाने योग्य और 'वरनयरपट्टणुगगयं' वर नगरनोदगत अर्थात् विशिष्ट नगर में निर्मित किया गया याने प्रसिद्ध पाटन जैसे नगर शहर में बनाया गया और 'कुसलनर पसंसियं-अत्यंत निपुण याने योग्य शिल्पीकार के द्वारा प्रकाशित और 'अस्स. लाला पेसलं' अश्वलाला पेलव-घोडेके मुखका फेनके समान अत्यंत सफेद और मनोहर याने अत्यंत कमनीय तथा छेयारिय कणगखइयंतकम्म' छेकाचार्य याने शिल्प विद्या में विशारद अत्यंत योग्य विद्वान जनों द्वारा गूथे गये सुवर्ण सूत्रों के प्रांत भाग अर्थात् छोटेवाले एवं 'इंसलक्खणं' हंस लक्षण अर्थान् हंस के समान धवल अत्यंत सफेद वर्णवाले-'पट्टजुयलं' गर युगल अर्थात् ीमत मे४ ५ सोना भडा२ ती 'तिपडोलतित्तिए णं साहिएणं' से प्र४२ना વિપટેલની સરખા તીતે અર્થાત્ કડવા અને સાધિક અર્થાત્ એકલાખ સોના મહોરોથી qधारे ४ीमतवा 'सीतेण गोसीसरत्तचंदणेणं अणुलिंपइ' तथा अत्यंत शात गोशी રક્તચંદનથી અનુક્ષેપ કર્યો. અર્થાત્ ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામીને એ ઉંચા પ્રકારનું કીમતી हनायु, तथा 'अणुलिंपित्ता' से गोशष २४तयन समापीने 'इसिं निस्सासवायवोझ' ઈષત્ નિશ્વાસ વાતવાહ્ય અર્થાત લેશમાત્ર નિશ્વાસઘાત અર્થાત્ જરાસરખા પવનથી ઉડાવીशय तवा मन 'वरनगरपट्टणुग्णय' विशेष प्रा२नाना भने पत्तनमा मनावेस तथा प्रसिद्ध तथा 'कुसलनरपसंसियं' सत्यतनपुर ॥ ४॥२॥राये पाणु तथा 'अस्स लालापेल' घाना मदानी an (५) नारे सत्यत घाणु म मना २ 'व्यारिय कणगखइयतकम्म' तथा छाया अर्थात् शि६५ विद्यामां शण सत्यात योग्य सेवा अत्यात योग्य सेवा विद्वाना द्वारा सा सोनाना सूत्रन। छ१।७॥ तथा 'हंसलक्खणं' श्री. आयासूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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