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________________ मर्मभ काशिका टीका श्रुतस्कंघ २ सू० ५ अ. १५ भावनाध्ययनम् ___ १०३१ परम्परायां सम्पन्नौ, पार्श्वनाथसेवको भूत्वा 'समणोबासगा यावि होत्था' श्रमणोपासको चापि अभूताम् 'ते णं बहूई वासाई तौ खलु--श्रमणस्य महावीरस्य मातापितरौ त्रिशलासिद्धार्थों बहूनि वर्षाणि 'समणोवासगपरिमागं पालइत्ता' श्रमणोपासकपर्यायम्-श्रावकधर्म पालयित्वा 'छण्हं जीवनिकायाणं' षण्णां जीवनिकायानाम्-पृथिवीकाय-अप्काय-तेजस्काय-वायुकाय वनस्पतिकाय सात्मकजीव समूहानाम् 'सारक खणनिमित्तं' संरक्षणनिमित्तं संरक्षणार्थम् 'आलोइत्ता' आलोच्य-आलोचनां कृत्वा निंदित्ता' निन्दित्वा-आत्मनः साक्षिनिन्दां कृत्वा ___टीकार्थ-अब श्रमग भगवान् वीतराग श्रीमहावीर स्वामी के माता पिता को श्रमणों की उपासना द्वारा और तपश्चर्या से अच्युन नाम का बारहवां देवलोक प्राप्त हुआ, बाद में वहां से अर्थात् बारहवां देवलोक से च्युत होकर महाविदेह क्षेत्र में उत्पत्ति हुई और अन्त में सिद्धि प्राप्त हुई इन सभी बातों का निरूपण करते हैं-'समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पासावच्चिजा, समणो वासगा यावि होत्था' श्रमण अर्थात् जैन साधु वीतराग भगवान् श्री महावीर स्वामी के माता पिता को अर्थात् त्रिशला नाम की माता को तथा सिद्धार्थ नाम के पिता को श्रीपार्श्वनाथ तीर्थकर के शिष्य परम्परा में प्राप्त होने का अवसर मिला याने तीर्थकृत् भगवान् श्री पार्श्वनाथ प्रभु के पास दीक्षा प्रव्रज्या को ग्रहण कर श्रमण जैन साधुओं के भी उपासक हुए । 'ते णं बहूई वासाइं समणोवासगपरियागं पालइत्ता' वे दोनों श्रमण भगवान् श्री महावीर स्वामी के माता पिता अर्थात त्रिशला और सिद्धार्थ बहत बर्षो तक श्रमणों के उपासक पर्याय की अर्थात् श्रावक धर्मका पालन कर-'छणं जीवनिकायं-छ जीवनिकायों का याने पृथिविकाय-अप्काय तेजाकाय-वायुकाय वनस्पतिकाय और असरूप जीव समूहों का-'सारखणनिमित्तं आलोइत्ता' सरंक्षण के लिये आलोचन कर और 'निंदित्ता ટીકાઈહવે શ્રમણ ભગવાનના માતાપિતાને બારમા દેવલે કની પ્રાપ્તિ અને ત્યાંથી श्युत थ६२ महावित क्षेत्रमा पत्ती भने सिद्धिानिनु ४थन ४२वामां आवे छे'समण स्स णं भगवओ महावीरस्स' श्रम भगवान महावीर स्वामीना 'अम्मापियरो पासावच्चिજ્ઞા’ માતાપિતાને અર્થાત્ ત્રિશલા નામની માતાને અને સિદ્ધાર્થ નામના પિતાને પાર્શ્વનાથ તીર્થકરની શિષ્ય પરંપરા પ્રાપ્ત થવાનો અવસર મળે. અર્થાત્ તીર્થંકર પાર્શ્વનાથ પ્રભુ पासे. दीक्षा ग्रह ४शन 'समणोवासगा यावि होत्था' श्रभ जैन साधुसोना पास थया. 'तेणं बहई वासाइं तमामे अर्थात् श्रम नपानना मातापिता थेट त्रिशला भने साथ थे भन्न ५ १ ५यन्त 'समणोवासगपरियागं पालइत्त।' श्रमाना पासपानी योयने अर्थात् श्रा३४ धमनु पासन परीने 'छण्हं जीवनिकायाणं' छ नियानु અર્થાત્ પૃથ્વીકાય-અષ્કાય-તેજસ્કાય-વાયુકાય-વનસ્પતિકાય અને ત્રસકાયરૂપ જીવસમૂહોના 'सारक्खणनिमित्तं सरक्षण भाट 'आलोइत्ता' मासोयना प्रशने भने 'निदित्ता' नि रीन श्री आया। सूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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