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________________ ९९८ आचारांगसूत्रे प्ररूपयितुमाह-'तेणं कालेणं तेणं समएणं' तस्मिन् काले चतुर्थे आरके तस्मिन् समये खलु गर्भागमनकाले इत्यर्थः 'समणे भगवं महावीरे' श्रमणो भगवान् महावीरः 'पंचहत्थुत्तरे यावि होत्था' पञ्चहस्तोत्तरश्चापि अभवत्-भगवतो महावीरस्य वक्ष्यमाण पञ्चकल्याणकम् उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रे अभूत, हस्त नक्षत्रम् उत्तरं यस्माद् नक्षत्रात् तद इस्तोत्तरं नक्षत्रम् इत्ययः, पश्चहस्तोत्तराणि नक्षत्राणि यस्य स पञ्चहस्तोत्तर इत्येवं विग्रहो बोध्यः, 'तं जहा-हत्थुत्तराई चुए' तद्यथा तथाहि हस्तोत्तरामु च्युतः, भगवान् महावीर: उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र देवलोकात् च्युतः च्युतवान् ‘चइत्ता गम्भं वक्फते' च्युखा-देवलोकात् च्यवनं कृत्वा अस्मिन् लोके गर्भ व्युत्क्रान्तः गर्भे उत्पन्नः इत्यर्थः इति प्रथमं कल्याणकम् बोध्यम् , अथ द्वितीयं कल्याणकमाह-'हत्युत्तराहिं गम्भाओ गभं साहरित्तए' हस्तोत्तरासु-उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रे गर्भाददेवानन्दागर्भादित्यर्थः गर्भे त्रिशलाया गर्ने संहृतः-संकृष्टः नीत इत्यर्थः इति आश्चर्यजनलिये वीतराग भववान् महावीर स्वामी के जीवन का निरूपण करते हैं-'तेणं कालेणं, तेणं समएणं भगवं महावीरे पंच हत्थुत्तरे यावि होत्था' उस काल में अर्थात चतुर्थ आरक में और उस समय में अर्थातू गर्भागमन काल में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पञ्च हस्तोत्तर भी हुए अर्थात् भगवान् महावीरस्वामी को वक्ष्यमाण पञ्चकल्याणक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुआ 'तं जहा इत्युत्तराइंचुए' जैसे कि-भगवान् महावीर उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में देवलोक से च्युत हुए अर्थात् देवलोक से गिरे और 'चइत्ता' देवलोक से च्यवन कर अर्थात् देवलोक से गिरकर इसलोक में 'गभं वक्ते' गर्भ में उत्पन्न हुए, इस प्रकार प्रथम कल्याणक समझना चाहिये, अब द्वितीय कल्याणक कहते हैं 'हत्थुत्तराहिं गभाओ गम्भं साहरित्तए' हस्तोतरा नक्षत्र में अर्थात् उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में देवा. नन्दा के गर्भ से त्रिशला के गर्भ में संहृत हुए अर्थात् संकर्षणकर (खींचकर) लाये गये एतावता देवानन्दा के गर्भ से खीचकर त्रिशला के गर्भ में रक्खे गये तथा सूत्रा२ छ. 'तेणं कालेगं तेणं समएणं' 2 मा अर्थात योथा मारामां मन. ये सभये अर्थात् मागमनना भी 'समणे भगवं महावीरे' श्रम मवान महावीर प्रभुने 'पंच हत्थुत्तरे यावि होत्था' पांय स्तोत्तर ५५ च्या. अर्थात् भगवान् महावीर स्वामीन पक्ष्यमा पांय या उत्त। न नक्षत्रमा थयां 'तं जहा' म 'हत्थुत्तराई ગુરૂ શ્રીભગવાન મહાવીરસ્વામી ઉત્તરા ફાલ્ગન નક્ષત્રમાં દેવલોકમાંથી Úતથયા અર્થાત્ દેવ alथा भूसमा यतिथय। 'चइत्ता' हेराथी यवन शन अर्थात् पोथी मुभा मावीर 'गब्भं वकते' मा मा प्रवेश ४ मा प ४क्ष्या सभा, वे मी या ४ामां छे–'हत्थुत्तराहि' स्तोत्तरा नक्षत्रमा अर्थात् २।३८-नी नक्षमा 'गब्भाओ गम्भं' हेवानहाना माथी निशान सभा संत थय। अर्थातू સંકર્ષણ કરીને ખેંચીને) લાવવામાં આવ્યા. એટલે કે દેવાનંદાના ગર્ભમાંથી ખેંચીને श्री माया सूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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