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[२०] विषय
पृष्ठाक ५ तृतीय गाथाका अवतरण, गाथा और छाया।
५८० ६ लाढ देशमें वहांके लोगोंने भगवान को बहुत उपसर्ग
किये। कितनेक तो भगवान् की ताडना करते थे, और कुत्ते भगवान् को काटते थे और गिरा कर उनके ऊपर चढ बैठते थे।
५८०-५८१ ७ चौथी गाथाका अवतरण, गाथा और छाया ।
५८१ ८ बहुत थोडे ऐसे लोग थे जो हिंसक मनुष्योंको और काटते
हुए कुत्तों को रोकते थे; अधिकतर तो ऐसे ही मनुष्य थे जो भगवान् को ताडन करके उनके ऊपर कुत्तों को
हुलकाते थे। ९ पांचवीं गाथाका अवतरण, और छाया । १० लाढ देशकी वज्रभूमिके लोग तुच्छअन्नभोजी और क्रूर
स्वभावके थे। वहां पर अन्यतैर्थिक श्रमण लाठी और नालिका ले कर विहार करते थे।
५८२-५८४ ११ छठी गाथाका अवतरण, गाथा और छाया। १२ उस लाढदेशमें लाठी और नालिका ले कर यद्यपि अन्य
तैर्थिक श्रमण विहार करते थे तो भी उन्हें कुत्ते काट लेते थे। यह लाढ वस्तुतः बडा ही दुश्चर था।
सातवीं गाथा का अवतरण, गाथा और छाया । १४ भगवान् लाढदेशकी उस अनार्य भूमिमें भी डंडे आदिके
विना ही विचरण करते हुए सभी प्रकारके उपसर्गों को सहे। १५ आठवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया। १६ संग्रामके अग्रभागमें हाथी जैसे शत्रुसेनाको जीत कर उसके
पारगामी होता है उसी प्रकार भगवान् भी परीषहोपसर्गोंको जीत कर उनके पारगामी हुए । विहार करते हुए भगवान्
श्री. मायाग सूत्र : 3