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________________ श्रुतस्कन्ध. १ धूताख्यान अ. ६. उ. ३ ३०९ अत्र किं शब्दः प्रश्ने; तथाभूतमपि मोक्षमार्गारूढं किमरतिविषयस्थानं नीत्वा स्वलयेत् ?, स्खलयेदित्युच्यते । इन्द्रियाणि दुर्वाराणि अविनयवन्ति च, मोहशक्तिश्चाचिन्त्या, तथा-कर्मपरिणतिरपि विचित्रा, तर्हि किं न कुर्यात् ?, अपि तु सर्व कुर्यादिति भावः। यद्वा-किं शब्दोऽत्र क्षेपार्थे । अरतिस्तथाभूतं मोक्षमार्गावस्थितं विधारयेत्= प्रतिस्खलयेत् किम् ?, नैव विधारयेदित्यर्थः ॥ सू० ६॥ किञ्च–'संघेमाणे' इत्यादि । मूलम्-संधेमाणे समुट्टिए, जहा से दीवे असंदीणे ।सू०७॥ छाया-संदधानः समुत्थितः; यथा स द्वीपः असंदीनः ॥ सू० ७ ॥ लित कर सकता है क्या ? यहां “किं" यह शब्द प्रश्नवाचक है। उत्तर-हां! ऐसे भी उस मोक्षमार्ग में आरूढ हुए मुनिको अरतिभाव विषयोंकी ओर ले जाकर स्खलित कर सकता है। क्यों कि इन्द्रियां दुर्निवार हैं, मोहकी शक्ति अचिन्त्य है तथा कर्मकी परिणति भी विचित्र है। इनकी प्रबलता क्या नहीं कर सकती? सब कुछ कर सकती है। ___ अथवा-"किं" शब्द यहां क्षेप अर्थमें है। इसका मतलब है कि यदि कोई हमसे यह पूछे कि क्या ऐसे मोक्षमार्गमें स्थित साधुको भी अरतिभाव संयममार्गसे च्युत कर सकता है ? तो हम यह उत्तर देगें कि नहीं कर सकता है ॥सू०६॥ ___तथा-" संधेमाणे" इत्यादिमा " किं " 20 श५४ प्रश्नवाय छे. ઉત્તર ––હા, એવા મોક્ષમાર્ગમાં આરૂઢ થયેલા મુનિને પણ અરતિભાવ વિષયેની તરફ લઈ જઈ સ્મલિત કરી શકે છે, કેમ કે ઈન્દ્રિયની અનેકવિધ મોહવાની શક્તિ અચિત્ય છે તથા કર્મની પરિણતિ પણ વિચિત્ર છે. એની પ્રબળતા શું નથી કરી શકતી? બધું કરી શકે છે. ____ अथवा--" किं" A७४ मा ५ अर्थमा छे. यानी मतमो छ કદાચ કઈ એમ પૂછે કે શું આવા મોક્ષમાર્ગમાં સ્થિત સાધુને પણ તિભાવ સંયમ માર્ગથી યુત કરી શકે છે? તે એને આ ઉત્તર છે કે કરી शता नथी. (सू०१६) "संधेमाणे" त्याह श्री. मायाग सूत्र : 3
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
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