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विषय
पृष्ठाङ्क मनुष्य, स्त्री, पुत्रादिसे अपमानित, अनेक आधि व्याधियोंसे ग्रस्त, और राजपुरुषादिकोंसे हृतसर्वस्व होते हुए भी गृहत्याग नहीं कर सकते । वे दुःखी हो कर सकरुण विलाप करते हैं और निदान करते रहते हैं, इस कारण इन्हें मोक्ष नहीं मिलता।
२५२-२५४ पञ्चम सूत्रका अवतरण और पञ्चम सूत्र ।
२५५ १० हेयोपादेय विवेकरहित मनुष्य जन्म-मरणके चक्करमें पडे रहते हैं।
२५५ ११ षष्ठ सूत्रका अवतरण, षष्ठ मूत्र और छाया।
२५६ १२ हेयोपादेय विवेकरहित अनात्मज्ञ पुरुष स्वकृत कर्मों के फल
स्वरूप कुष्ठादि रोगोंसे और विविध परीषहोंसे आक्रान्त होते रहते हैं।
२५६-२५९ १३ सप्तम सूत्रका अवतरण, सप्तम सूत्र और छाया । २५९-२६० १४ जो पाणी तममें अर्थात् नरकादि अथवा मिथ्यात्वादिमें
पडे हुए हैं वे अन्धे हैं । ऐसे जीव कुष्ठादिसे आक्रान्त हो कर दुःख भागी होते हैं।
अष्टम सूत्रका अवतरण, अष्टम मूत्र और छाया। १६ वासक रसग आदि जो जीव हैं ये सभी दूसरे जीवोंको
कष्ट देते हैं। १७ नवम सूत्रका अवतरण, नवम सूत्र और छाया। १८ यह लोक महाभययुक्त हैं, और इसमें रहनेवाले सभी प्राणी
अत्यन्त दुःखी हैं। १९ दशम मूत्रका अवतरण, दशम सूत्र और छाया। २० कामासक्त मनुष्य, इस क्षणभंगुर निस्सार शरीरकी पुष्टि
श्री. मायाग सूत्र : 3