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________________ अध्य० २. उ. ६ ____३२९ यद्वा-'वयं' इत्यस्य ' वय-'मितिच्छाया, तत्र वयन्ति-परिभ्रमन्ति जन्तवः स्वेन कर्मणा यस्मिन् स वयः संसारस्तं प्रकुरुते-संसारे परिभ्रमतीत्यर्थः । अथवा 'वयः' इतिच्छाया, कारणस्य-ज्ञानावरणीयादिकर्मणः कार्येण-प्रमादेन सहाभेदात् स्वकेन विप्रमादेन निजार्जितेनानेकविधेन मद्यादिरूपप्रमादजनकेन कर्मणा वयः अवस्थाविशेषमेकेन्द्रियादिकं, पञ्चेन्द्रियेषु कललार्बुदादिरूपं, दारिद्रयदौर्भाग्याद्यात्मकं च प्रकुरुते । भंग ही महान् अनर्थ का और भव की अनन्त परंपरा का बढ़ानेवाला कारण माना गया है। अथवा-जो संयमी पांच प्रकार के प्रमादों का आसेवन करता है वह अपने संसार को बढ़ाता है, यह भी “वयं पकुव्वइ" इस पद से प्रकट होता है। "वयं" इसकी छाया "व्रतं" जब होती है तब पूर्वोक्तरूप से उसका अर्थ संगत होता है। परन्तु जब "वयं" इसका अर्थ "वयन्ति-परिभ्रमन्ति जन्तवः स्वेन कर्मणा यस्मिन् स वयः" इस व्युत्पत्ति के अनुसार किया जावेगा तो उसका अर्थ संसार होगा; क्यों कि प्राणी अपने उपार्जित कर्मों के द्वारा संसार में ही परिभ्रमण करते रहते हैं। ___ अथवा-“वयं" की छाया “वयः" जब होगी तब इसका यह भी अर्थ होगा कि निजार्जित मद्यादिकरूपप्रमादजनक कर्म से एकेन्द्रियादिकरूप अवस्थाएँ, तथा पंचेन्द्रियों में गर्भ के अन्दर कलल अर्बुदादिरूप, तथा ભંગ થાય છે તે ભંગ જ મહાન અનર્થને, અને ભવની અનંત પરંપરાને વધારવાના કારણ રૂપ બને છે. અથવા–જે સંયમી પાંચ પ્રકારના પ્રમાદોનું આસેવન કરે છે તે પોતાના संसारने वधारे छ ते ५५४ " वयं पकुव्वइ " २ ५४थी प्रगट थाय छे. “ “वयं" तेनी छाया “व्रतं" ल्यारे डाय छे त्यारे पूर्वरित ३५थी तेनी म संगत थाय छ. परंतु न्यारे “वयं” तनो अर्थः “वयन्ति-परिनमन्ति जन्तवः स्वेन कर्मणा यस्मिन् स वयः ” २व्युत्पत्ति मनुसा२ ४२वामां आवे तो तेनी म સંસાર થશે, કારણ કે પ્રાણ પોતાના ઉપાર્જિત કર્મો દ્વારા સંસારમાં જ પરિભ્રમણ કરતા રહે છે. ___ अथवा “वयं "नी छाय॥ "वयः” ल्यारे थशे त्यारे तेना से ५५१ अथ थशे કે પિતાના ઉપાર્જિત મદ્યાદિકરૂપ પ્રમાદજનક કર્મથી જીવોની એકેન્દ્રિયાદિક રૂપ અવસ્થાઓ, તથા પંચેન્દ્રિયેના ગર્ભની અંદર કલલ અબુદાદિરૂપ, તથા દારિ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006302
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages775
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size41 MB
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