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________________ ते थे. जिसका मुख्य हेतू यह ही दिखता है, कि वो महात्मा सूत्र में कहे मुजब ज्ञान ध्यान में विशेष काल व्यतीत करते थे. श्री उत्तराध्ययनजी सूत्रके २६ में अध्ययनमें साधूके दिन कृत्य और रात्री कृत्य का बयान है, वहां फरमाया हैकि पढम पोरसी सज्झायं, बीयं झाण झियायइ।। तइयाए भिक्खायरि,चउत्थीभुजो विसज्झाय॥१२॥ अर्थात-दिनके पहिले पहरमें सज्झाय (मूल सू संका पठन) दूसरे पहरमें ध्यान (सत्रके अर्थका विचार) तीसरे पहरमें भिक्षाचरी (भिक्षावृतीसे निर्दोष अहार प्रमुख ग्रहणकर भोगवे)और चौथे पहरमें पुनः सज्झाय; यह दिनकृत्य. और रात्रीके पहले पहरमें सज्झाय, दूसरे में ध्यान, और "तइया निंदा मोक्खंतु” अथात् तीसरी पहरमें निद्रा से मुक्त होने, और चौथे में पुनः सज्झाय करे! यों दिन रात्रीके ६ पहर ज्ञान ध्यान में व्यतीत करते थे!! तैसेही श्रावकों के लिये भी इसी सूत्र के ५ में अध्ययन में फरमाया हैकि आगारी यं सामाइ यंगाइ, सट्ठी काएण फासइ॥ पोसह दूहउ पक्खं, एगराइ न हावए ॥२३॥
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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