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________________ ३५६ . ध्यानकल्पतरू. उनके जित्ने पुदल जक्तमें हैं, उन्ह सबको स्पश्ये. २ द्रव्यसे सुक्ष्म पुद्गल प्रावृतन लो पूर्वोक्त सातही प्रकार के पुद्गलोंमे से प्रथम सर्व जगत्में रहें. उदारिक केसब पुगल अनुक्रमें स्पश्ये, किंचितही नहीं छोडे, फिर वैक य के फिर तेजसके यो ७ ही के अनुक्रमें स्पश्ये. ३ क्षेत्रसे बादर पुद्गल प्रावृतन सो मेरु प्रवृतसें दशही दि शा आकाश की असंख्यात श्रेणी मकडीके जालेके तं तवेंकी तरह फैली है, उन्ह सबपे जन्म मरण, कर स्प श्र्ये, ४ क्षेत्रसे सुक्ष्म पुगल प्रावर्तन सो पूर्वोक्त श्रोणियोंमे से पहले एकही श्लोण ग्रहण कर उसपे अनुक्रमें (मेरुसे अलोक तक) जन्म मरण कर स्पश्र्ये. जराभी नहीं छोडे, फिर दूसरी श्रेणिभी इस तरे यो सब श्रेणि स्पश्ये, ५ कालसे वादर पुक्ल प्रावृतन सो समय आंवालका स्तोक लव महुर्त दिन, पक्ष, मांस, ऋतु, आ यन, वर्ष, युग, पूर्व, पल्य, सागर, सर्पणी, उत्सर्पणी और कालचक्र, इन सबकालमें जन्म मरण कर स्पश्यें, ६ काल से सुक्ष्म पद्दल प्रावर्तन सो, पहले सर्पणी काल बेठा, उ सके पहले समय जन्म के मरे फिर दूसरी वक्त सरप णी लगे तब उसके दूसरे समयमे जन्मके मरे, यों आं वलकाका समय पूरा होवे वहांतक. फिर सरपणी बैठे उसके पहली आंबालिका में जन्मके मरे, फिर दूसरी
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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