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________________ तृतीयशाखा-धर्मध्यान. २६५ देव देवीयों + वहां अत्यत हर्षउत्सहाके साथ एकत्रहो हाथ जोड, अंत्यत नम्रता से पूछते है; आपने क्या कर नी करी, जिससे हमारे नाथ हुये. तब वो देवछ अव धी ज्ञान से पूर्व भवका हाल जान, और देवलोककी ऋद्धिसे चकित हो, अपने पुर्वले सम्बधीयोंको चेताने उत्सुक होते हैं; तब वहां के देव कहते हैं, एक महूर्त मात्र हमारा नाटक देखके, फिर इच्छित कीजीये. वो सामान्य नाटक करते हैं, उसमें ह्यांके दो हजार वर्ष बीत जाते हैं, ह्यांके सम्बधीयों मरक्षप जाते है, और वो भी प्राप्त सुखमें लुब्ध हो जाता हैं. १ बारे देवलोकके उपरके सर्व देव अहमेंद्र है, अर्थात् सब बरोबरीके है. छोटा बडा कोइ नहीं हैं. इस लिये वहां नाटक चेटक करनेवाला कोई नहीं है. और बारमें स्वर्गके उपर जैन शुद्धाचारी विपूल ज्ञानी साधू ही जाते है. वो पहलेसेही अल्प मोही होते है. इस लिये ज्ञान ध्यान सिवाय अन्य तर्फ रुचीही मंद होती है, वो सावधान होतेही पूर्व सम्पादन किये हुये ज्ञान के ध्यानमें मशगुल हो जाते है. जिससे जिनोका उत्कृ. ष्ट ३३ सागरोपम का आयुष्य परमानंद परम सुखमें + दूसरे देवलोक के उपर देवी नहीं हैं. * देवता अवधी ज्ञान जन्मसे स्वभाविकही होता है.
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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