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________________ तृतीयशाखा-धर्मध्यान. १८१ वैपार करनेसे. अच्छी वस्तु दिखा खोटी खिलानेसे. १७६ प्र-१२ बर्ष का छोड कायसे रहे? उ-पेशा व भेला कर सर्व रात्री रखनेसे. १७७ प्र-२४ बर्षका छोड कायसे रहे ? उ-तिब्र भाव विषय सेवनसे. गर्भ गलानेसे. १७८ प्र-सदा सरीर क्यों जले? उ-फूलोंका मर्दन करनेले. बहोत अत्तर उगटणे लगानसे. १७९ प्र-वंझा स्त्री कायसे होवे? उ--फूलका अत्त र निकालनेसे. मनुष्य पशुके बच्चे मारनेसे. १८० प्र-मृतबांझा कायसे होवे ? उ-उगती विनास्प ति, कूपल चुटनेसे. ___ १८१ प्र-बहुत स्त्री होके भी पुन क्यों न होवे ? उ-बहुत विनास्पतीका रस निकालनेसे. १८२ प्र-हलालखोर कायसे होवे? उ-जलचर जीव बहुत मारनेसे. कसाईके कर्म करनेसे.. १८३ प्र-सशक्त धर्म क्यों नहीं बने? उ-ममइ (मनुष्यका रक्त) बहुत निकाला होवेसो. १८४ प्र-सरीर भारी कायसे होवे? उ-आसा सराप दारू बहुत पिया होयतो. . १८५ प्र-साधुके सिर आल देवे, शुद्ध आहार लेने वाले साधू को अशुद्ध देवे. तो गर्भमें आडा आके.
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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