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________________ ९२ ध्यानकल्पतरू क्व ७ हैं. १ 'मिथ्यात्व' वाह्या श्वरूप मिथ्यात्वका और अन्दर समकित पावे सो. २ 'सास्वादानीय' = लें श मात्र धर्म श्रधके, पडजायसो. ३ 'मिश्र' = श्रधाकी गडवड. ४ ' क्षयोपशमिक = मोह कर्मकी प्रकृती, कुछ क्षयकरी और कुछ उपशमाइ ढांकी) ५ 'औपशमिक मोहकी प्रकृती उपशमाइ. ६ 'वेदिक' प्रकृती वेदे ( यह क्षायिकके पेलह क्षण मात्र होती है) ७ क्षायिक मोहकी प्रकृतियों क्षय करे. १४ " आहारे" आहार करे वह आरिक, और मार्ग वहता ( एक सरीर छोड दूसरे सरीरमें जाता ) तथा मोक्षादिकके जीव अन- आहारिक. यह १४ ही मार्गणा तो अर्थकी सागार हैं, परन्तु ग्रन्थ गौरव के लिये ह्यां संक्षेपमें चेताया हैं. ध्यानी इने विस्तारसें चिंतवन करेंगें. " महावृत्त " महावृत-बडे वृत, जैसे तालाबके नाले रोकनेंसे, तलावमें पाणी आना बंद हो जाता है. वैसेही वृत प्रत्याख्यान ( पञ्चखाण) करनेसे जगतका पाप बंद हो जाता है. श्रावकके व्रतकी अपेज्ञा से बडेसो साधूजी के
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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