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________________ ऐतिहासिक घटना से रहा होगा जिसने भारतीय जन-मानस में भौतिक व आध्यात्मिक-दोनों तरह की सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया होगा। इस पर्व को मनाकर भारतीय जन-मानस भावी सुखसमृद्धि की कामना करता है और उक्त कामना की पूर्ति हेतु अभीष्ट देव गणेश-महालक्ष्मी की पूजा-उपासना करता है। - जैन परम्परा इस पर्व को अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर के निर्वाण-गमन तथा उनके प्रथम गणधर गौतम को हुई केवलज्ञान (सर्वज्ञता) की उपलब्धि से जोड़ती है। जैन आगम में प्राप्त निरूपण के अनुसार, महावीर भगवान् भव्यजीवों को उपदेश देते हुए पावानगरी में पधारे । भगवान् ने दो दिन का उपवास किया। वे दो दिन-रात तक प्रवचन करते रहे। भगवान् ने अपने अंतिम प्रवचन में पुण्य और पाप के फलों का विशद विवेचन किया। भगवान् प्रवचन करते-करते ही निर्वाण को प्राप्त हो गए। उस समय रात्रि चार घड़ी शेष थी। (कल्पसूत्र, सू. 147 व सुबोधिका टीका)। इस प्रकार चतुर्थकाल की समाप्ति में तीन वर्ष साढ़े आठ मास बाकी रह जाने पर, कार्तिकी अमावस्या के प्रभातकालीन सन्ध्या के समय, योग (मन-वचन-काय की क्रिया) का निरोध करके कर्मों का नाश कर भगवान् महावीर मुक्ति को प्राप्त हुए। वह ज्योति मनुष्य-लोक से विलीन हो गई जिसका प्रकाश असंख्य लोगों के अन्तःकरण को प्रकाशित कर रहा था। वह ज्ञान-सूर्य क्षितिज के उस पार चला गया जो अपने रश्मिपुंज से जन-मानस को आलोकित कर रहा था। भगवान् का निर्वाण हुआ, उस समय क्षणभर के लिए समूचे प्राणी-जगत् में सुख की लहर दौड़ गई। उस समय मल्ल और लिच्छवि गणराज्यों ने दीप जलाए। कार्तिकी अमावस्या की रात जगमगा उठी (द्र. कल्पसूत्र 127)। जैन धर्म एवं तैदिक धर्म की सास्कृतिक एकता 682
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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