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________________ 1600000000000000000000000000000000 पटकoo जानन्अज्ञान koooz 9 89poooooo RRRRRRooooooooooo अज्ञान यानी अन्धकार । ज्ञान यानी प्रकाश। बिना प्रकाश के आध्यात्मिक यात्रा तो क्या, जीवन-यात्रा भी सुचारु रूप से निर्विघ्न सम्पन्न नहीं कर सकते। अन्धकार में व्यक्ति के पतन की संभावना रहती है, वैसे ही अज्ञानी व्यक्ति के भी पतित होने की सम्भावना रहती है। ज्ञानी व्यक्ति ही भले-बुरे की पहचान करने में सक्षम हो पाता है और उन आचरणों से बचता है जिनसे आत्मअहित होता हो। इस दृष्टि से सदाचार की अपेक्षा ज्ञान की श्रेष्ठता व पूर्ववर्तिता मानी जाती है। संसार की समस्त वस्तुओं की अपेक्षा यदि आत्मतत्त्व को पूर्णतया जान लिया जाय तो अन्य वस्तुओंका ज्ञान स्वत: हो जाएगा, क्योंकि आत्मा के ज्ञान हेतु आत्मेतर पदार्थों के ज्ञान का होना स्वतः अपेक्षित है। वैदिक व जैन- इन दोनों धर्मों में की गई ज्ञान-विषयक चर्चा प्रस्तुत है पढमं नाणं तओ दया। (दशवैकालिक सूत्र 4/10) -पहले ज्ञान है, उसके बाद आचरण है। __ (2) न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते। (गीता-4/38) - इस लोक में ज्ञान के समान कुछ भी पवित्र नहीं है। जैन # कि धमनी सारhin एकना/454 >
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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