SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 388
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् महावीर की इस उद्घोषणा ने तत्कालीन तथाकथित धार्मिकों के गढ़ हिला दिए। साधारण व्यक्ति से लेकर बड़े-बड़े सम्राट तक भगवान् महावीर के शिष्य बन गए। महावीर एक आन्दोलन बनकर उठे। उनका यश दिग्दिगन्तों में व्याप्त हो गया। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य अपरिग्रह और अनेकान्त भगवान् महावीर के प्रमुख उपदेश थे। हजारों नर-नारी भगवान् महावीर के धर्मसंघ में प्रव्रजित हुए और लाखों ने उनके सिद्धान्तों को आंशिक रूप से अपने जीवन में धारण किया। निरन्तर तीस वर्षों तक भगवान महावीर सत्य और अहिंसा की पताका फहराते हुए भारत-भू पर विचरण करते रहे। अन्ततः बहत्तर वर्ष की आयु में कार्तिक अमावस की रात्रि में वे इस नश्वर देह का त्याग करके मोक्ष में जा विराजे । महावीर की बिदाई ने सर्वत्र उदासी फैला दी। उस क्षण देवराज इन्द्र ने प्रगट होकर साश्रुनयन महावीर-उपासकों से कहा- “यह रात्रि उदासी की नहीं, प्रसन्नता की है। महावीर ने आज समग्र महावीरत्व को साधा है। अतः 'अन्तर दीप' जलाकर धर्म-ध्यान पूर्वक इस रात्रि के माहात्म्य को स्वीकार करो।" भगवान् महावीर की बिदायगी की वह रात्रि अविस्मरणीय बन गई। निरन्तर अढ़ाई हजार वर्षों से महावीर के उपासक कार्तिक अमावस की उस रात्रि को प्रकाश-पर्व मानकर धर्मध्यान पूर्वक बिताते हैं। [२] मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम विदिक) श्रीराम का जीवन विश्व के लिए आदर्श जीवन है । वे प्रकाशपुरुष बनकर इस धरा पर अवतरित हुए थे। उन्होंने स्वयं प्रकाश को जीया और लोगों को जीना सिखाया । अधर्म रूपी अन्धकार उनके उदय से नष्ट हो गया । वे हजारों वर्षों से अधर्म पर धर्म और अन्धकार पर प्रकाश की विजय के प्रतीकपुरुष के रूप में स्वीकृत हैं। द्वितीय खण्ड/363
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy