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________________ [१] मुनि विष्णुकुमार हस्तिनापुर-नरेश महाराज पद्मोत्तर के दो पुत्र थे-विष्णुकुमार और महापद्म । विष्णुकुमार बाल्यावस्था से ही वैराग्यशील थे। पिता ने जब उन्हें राज्यसिंहासन देना चाहा तो उन्होंने इसे विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया। उन्होंने साधनामय जीवन जीने का अपना संकल्प अपने पिता को बता दिया। एक दिन जैन मुनियों का हस्तिनापुर में आगमन हुआ।विष्णुकुमार मुनि बनने को तत्पर हुए। राजा पद्मोत्तर ने अपने लघु पुत्र महापद्म को राज्य-भार सोंपकर विष्णुकुमार का अनुगमन किया। महापद्म भू-मण्डल के छः खण्ड जीत कर नौवें चक्रवर्ती बने। मुनि विष्णुकुमार ने उग्र तप प्रारंभ कर दिया। वे सुमेरू पर्वत की कन्दराओं में एकान्त समाधि में लीन रहते थे। उन्हें अनेक लब्धियां अनायास उपलब्ध हो गईं। उज्जयिनी-नरेश श्रीवर्म का एक अमात्य थानमुचि । नमुचि धर्म-द्वेषी था। एक बार सुव्रताचार्य उज्जयिनी पधारे। एक लघुमुनि से नमुचि ने शास्त्रार्थ किया और पराजित हो गया। उसने इसे अपना अपमान समझा। रात्री में तलवार लेकर वह मुनि का वध करने पहुंचा। लेकिन शासनदेवी ने उसे स्तंभित कर दिया। सुबह सभी को नमुचि के नीच विचारों की खबर मिली। सभी ने उसे धिक्कारा । राजा ने उसे अपने देश से निकाल दिया। नमुचि हस्तिनापुर पहुंचा। उसने महापद्म चक्रवर्ती के मन में जगह बना ली और वहां भी अमात्य का पद पा गया। एक बार नमचि ने वहां राज्यहित में कोई बड़ा काम किया। महापद्म ने प्रसन्न होकर उसे वर मांगने को कहा। नमुचि ने वर को महापद्म के पास सुरक्षित रख छोड़ा। समय गुजरता रहा। एकदा सुव्रताचार्य मुनि-संघ के साथ हस्तिनापुर आए। मुनि संघ के आगमन की सूचना नमुचि को मिली। उसके भीतर छिपी वैर की चिंगारी पद के अहंकार की हवा पाकर दावानल बन गई। उसने मुनि से बदला लेना चाहा। महापद्म के पास सुरक्षित वर उसने सात दिन के राज्य के रूप में प्राप्त कर लिया। शिकीरा समाए 32
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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