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________________ वामन और विराट -लक (सांस्कृतिक पृष्ठभूमिः) भारतीय दर्शनों का चिन्तन है-अणु में महत् छिपा हुआ है। छोटे-से बीज में पूरा वृक्ष छिपा हुआ होता है।आत्मा में परमात्मा निहित है। साधारण और निर्बल से दिखाई देने वाले मानव में कितनी शक्ति और विराट् स्वरूप छिपा हुआ है, यह चिन्तन का विषय है। वैदिक परम्परा के अद्वैत दर्शन में मान्य ब्रह्म तत्त्व को सूक्ष्म और महान् से महान् बताया गया है- अणोरणीयान् महतो महीयान् (कठोपनिषद्, 1/2/20, श्वेता. उप. 3/20)-अर्थात् ब्रह्म अणु से भी अणु है तो महान् से भी महान् है। यह सारा जगत् समष्टि रूप में 'ब्रह्म' है- ब्रह्मैवेदं विश्वमिदं वरिष्ठम् (मुण्डक उप. 2/2/11)- यह सारा जगत् सर्वश्रेष्ठ ब्रह्म के अलावा कुछ नहीं है। सर्वव्यापिनमात्मानं क्षीरे सपिरिवार्पितम् (श्वेता. उप. 1/16), अर्थात् आत्मा उसी प्रकार सर्वव्यापी है, जैसे दूध में घृत। आत्मा की इस महनीय शक्ति का आंशिक आभास हमें दैनिक जीवन में हमें इस रूप में मिलता है कि देहबल की अपेक्षा आत्म-बल वाले अपना अधिक प्रभाव स्थापित करने में सफल होते हैं। वैदिक-साहित्य में कहा गया है- बृहन्तं चिद् अहते रन्धयानि (ऋग्वेद, 10/28/9)अर्थात् आत्मबल से निर्बल भी बलवान् को वश में कर लेते हैं। इसी प्रकार, अन्यत्र भी कहा गया है- लोपाशः सिंह प्रत्यञ्चमत्साः (ऋग्वेद, 10/28/4), अर्थात् आत्मबल से गीदड़ भी शेर को भगा देता है। जैन धर्म कादिक धर्म की सांस्कृतिक एकता 340
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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