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________________ भगवान् ऋषभदेव ने लौकिक विद्या के साथ-साथ अध्यात्मविद्या का भी उपदेश दिया था। सम्भवतः इन्हीं हिरण्यगर्भ व ऋषभदेव को महाभारत (12/349/65) में योग-विद्या का उपदेशक बताया गया है हिरण्यगर्भो योगस्य वक्ता नान्यः पुरातनः। भागवत पुराण में भगवान् ऋषभदेव को नानायोगचर्या में निरत (भागवत- 5/5/35) बताया गया है। उन्हें योगविद्या का उपदेश देते हुए भी निरूपित किया गया है (भागवत- 5/5 अध्याय)। इसी प्रकार, जैन परम्परा के 22 वें तीर्थंकर अरिष्टनेमि का भी स्तुतिपरक निरूपण वैदिक मन्त्र में प्राप्त होता हैस्वस्ति नस्तार्यो अरिष्टनेमिः। (ऋग्वेद- 1/89/6, यजुर्वेद- 25/19,) उपर्युक्त निरूपणों से वैदिक काल में भी जैन परम्परा के गौरवमय अस्तित्व की पुष्टि होती है। हिन्दू संस्कृति यानी भारतीय संस्कृति आज समग्र भारतीय संस्कृति को हिन्दू संस्कृति के नाम से भी पुकारा या समझा जाता है। 'हिन्दू' शब्द की अनेक व्युत्पत्तियां व अर्थ किये गये हैं, वे सब वैदिक व जैन- दोनों धर्मों या संस्कृतियों की समष्टिगत विशेषताओं व मान्यताओं को ही इंगित करते हैं। अतः दोनों धर्मों को हिन्दू संस्कृति की व्यापक परिधि में ही प्रतिष्ठित समझना चाहिए। ___'हिन्दू' शब्द का प्रचलन इस्लाम धर्म के प्रादुर्भाव से भी हजार-डेढ हजार वर्ष पूर्व होने लगा था। ईरानी लोगों में 'स' को 'ह' बोलने की प्रवृत्ति थी, अतः सिन्धु को व 'हिन्दू' पुकारते थे। वे भारतवासियों को, जो सिन्धु नदी के आसपास रहते थे, 'हिन्दू' कहा करते थे। इस शब्द का प्राचीनतम उल्लेख पारसी धर्मग्रन्थ जैन धर्म एवं वैदिक धर्म की सांस्कृतिक एकता/8 >
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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