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________________ उनके ऐसा करने से इन्द्रादि देव विचलित हो उठे। भवगान् विष्णु का आसन डोल गया। वे तत्काल अपने भक्त को दर्शन देने के लिए मधुवन में पधारे। ध्रुव के कपोलों को शंख से छूकर भगवान् विष्णु ने उनका ध्यान भंग किया। ध्रुव ने आंखें खोलीं। भगवान् को साक्षात् देख कर उनके हर्ष का पारावार न रहा। वे भगवान् के श्री चरणों में साष्टांग लेट गए। "ध्रुव! तुम्हारी अविचल भक्ति और तप से मैं प्रसन्न हूं।" भगवान् बोले-“हम तुम्हें वरदान देते हैं कि तुम दीर्घ काल तक सम्पूर्ण पृथ्वी का राज्य भोगोगे।" “मुझे राज्य की कामना नहीं है।" ध्रुव ने उत्तर दिया। "हम तुम्हें सर्वशक्तिसम्पन्न होने का वरदान देते हैं। भगवान बोले।" "नहीं प्रभु! मुझे शक्ति नहीं चाहिए।" "तो तुम्हें क्या चाहिए? मांगो? जो मांगोगे वही प्राप्त होगा।" "मैं आपको मांगता हूं।'ध्रुव भक्त ने दृढ़ता से कहा। ध्रुव की दृढ़ भक्ति, निष्काम अनुराग से प्रसन्न होकर भगवान् विष्णु ने उस नन्हे बालक को अपनी गोद में उठा लिया । परमपिता परमात्मा की गोद में बैठकर बालक ध्रुव आह्लादित हो उठे। उन्हें उनका ध्येय प्राप्त हो चुका था। [द्रष्टव्यः भागवत पुराण, 4/8-9 अध्याय] 000 [३] थावापुत्र (जैन) द्वारिका नगरी में थाव_ नाम की एक सेठानी रहती थी। उसका एक पुत्र था। थावा सेठानी का पुत्र होने से सभी उसे थाव_पुत्र कहकर पुकारते थे। ___ बाल्यकाल में ही थाव_पुत्र बड़ा बुद्धिमान् और तार्किक था। वह प्रत्येक विषय को गहराई से समझता था। उसकी माता उसकी अध्यापिका थी। जैन धर्ग एवं वैदिक धर्म की सांस्कृतिक एकता/266)
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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