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________________ ने अपनी नवपरिणीता पत्नी सुलोचना और सेना के साथ हस्तिनापुर के लिए प्रस्थान किया। हाथी पर आसीन जयकुमार गंगा के किनारे चल रहे थे। अचानक हाथी ने गंगा में प्रवेश किया। मध्य गंगा में पहुंचकर हाथी का पैर एक गड्ढे में धंस गया। वहीं पर 'काली' नाम का जलदेव रहता था। 'काली' ने ज्ञानबल से ज्ञात कर लिया कि हाथी पर वही जयकुमार आसीन है जिसने उसे पूर्व जन्म में मारा था। 'काली' ने बदले की भावना से हाथी का पैर पकड़ लिया गहरे जल में खींचने लगा। ___ मृत्यु-संकट साक्षात् था। सेना और अन्य रक्षक कुछ न कर सके। जयकुमार जल में डूबने के निकट थे। सुलोचना का हृदय पति को डूबते देख हाहाकार कर उठा। उसने सहायता के लिए इधर-उधर निहारा। लेकिन उस क्षण सब सहारे असहारे सिद्ध हुए। अन्ततः सुलोचना ने नयन बन्द करके पश्चपरमेष्ठी मन्त्रराज नवकार का स्मरण किया। सच्चे हृदय से उठे मन्त्र की शक्ति ने गंगा नदी की अधिष्ठात्री देवी गंगा के सिंहासन को डोला दिया। गंगा देवी प्रगट हुई और उसने 'काली' जलदेव को प्रताड़ित करते हुए उससे जयकुमार और उसके.हाथी की रक्षा की। तत्पश्चात् वह सुलोचना को नमस्कार करके अन्तर्धान हो गई। - विशाल सेना सहित स्वयं जयकुमार ने महामंत्र की महान शक्ति का साक्षात दर्शन किया। सभी की श्रद्धा महामंत्र के प्रति अटूट और गहरी हो गई। जब सभी आधार निराधार सिद्ध हो जाते हैं, महामंत्र का महाधार तब भी मनुष्य के साथ रहता है। बात केवल उस पर श्रद्धा की है। [२] गज और ग्राह विदिक) एक राजा थे। उनका नाम इन्द्रद्युम्न था।किसी अपराध पर एक ऋषि ने उन्हें शाप दे दिया। शाप के फलस्वरुप इन्द्रद्युम्न गज-हाथी बन गए। उक्त गजराज क्षीरसागर के तट पर त्रिकूट पर्वत के निकट हथिनियों के समूह का स्वामित्व करता हुआ विचरने लगा। त्रिकूट पर्वत के जन भए पदिक ार्ग की सारकतिक एकता 2160K
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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