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________________ •अपने छोटे भाई के साथ ये अपने प्रमुख शत्रु रावण-जो 8 वां प्रतिवासुदेव (प्रतिनारायण) माना जाता है-से युद्ध करते हैं (द्र. पद्मपुराण- 74/31) और विजय प्राप्त करते हैं। उल्लेखनीय है कि रावण की मृत्यु लक्ष्मण (नारायण) के हाथों होती है, न कि राम के हाथों (पद्मपुराण-76/28-34)। - ये अहिंसा के प्रबल पक्षधर थे। अपने राज्य में 'अहिंसा' को उन्होंने राजाज्ञा-पूर्वक प्रतिष्ठित किया था (द्र. उत्तरपुराण- 68/ 698)।अहिंसा धर्म के पर्याय जैन धर्म व संस्कृति में उनकी अगाध श्रद्धा थी। वे दुष्ट-निहन्ता, सज्जन-प्रतिपालक, नीतिज्ञ, मर्यादा के ज्ञाता व संस्थापक तथा सर्वदा कल्याणकारी कार्यों में संलग्न रहते थे (उत्तरपुराण-68/82-83)। अन्त में विरक्त भाव से अपार वैभव को त्याग कर सीता के साथ प्रव्रजित हो गए (पद्मपुराण- 68/75-712)।तप व संयम की उत्कृष्ट साधना के बल पर श्रुतकेवली व सर्वज्ञ परमात्मा हुए और अन्त में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गए (द्र. पद्मपुराण- 68/ 714-72, 2/248, स्थानांग- 9/61, समवायांग- 663 (67), तिलोयपण्णत्ति- 4/1437)। - केवली व सिद्ध-बुद्ध मुक्त होने से 'राम' समस्त जनमानस के अर्हन्त व सिद्ध परमेष्ठी के रूप में आज भी एक वन्दनीय, उपासनीय व आराध्य व्यक्तित्व हैं। जैन पुराणकार आचार्य गुणभद्र ने भगवान् राम की स्तुति इस प्रकार की है: जनयतु बलदेवो देवदेवो दुरन्ताद् दुरितदुरुदयोत्थाद् दूष्यदुःखाद् दवीयान् । अवनतभुवनेशो विश्वदृश्वा विरागो निखिलसुखनिवासः सोऽष्टमोऽभीष्टमस्मान् ।। (उत्तरपुराण-68/732) ता _म र 111 >
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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