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________________ इसी निरूपण-क्रम में यह भी उल्लेखनीय है कि जैन शास्त्रों के अनुसार, इस मनुष्य-लोक में दस ऐसे महावृक्ष हैं जिन पर देवों का भी निवास है (द्रष्टव्यः स्थानांग- 1/139)। वे हैं- जम्बू, धातकी, महाधातकी, पद्म, महाद्म और 5 कूटशाल्मली वृक्ष । इसी तरह, भवनवासी देवों एवं व्यन्तर देवों के भी अपनेअपने पृथक्-पृथक् चैत्यवृक्ष माने गए हैं: जैन सूत्रों (द्रष्टव्यः स्थानांग- 1/82) में भवनवासी देवों के निम्नलिखित दस चैत्य-वृक्ष बतलाए गए हैं। असुरकुमार अश्वत्थ नागकुमार सप्तपर्ण-सात पत्तों वाला पलाश सुपर्णकुमार शाल्मली-सेमल विद्युत्कुमार उदुम्बर अग्निकुमार शिरीस दीपकुमार दधिपर्ण उदधिकुमार वंजुल अशोक दिशाकुमार पलाश (तीन पत्तों वाला पलाश) वायुकुमार स्तनितकुमार कर्णिकार (कणेर) इसी प्रकार (स्थानांग- 8/117 में) व्यन्तर देवों के भी आठ चैत्य-वृक्ष बतलाए गए हैंपिशाच कदम्ब भूत तुलसी बरगद राक्षस खट्वांग किन्नर अशोक किंपुरुष चंपक वप्र यक्ष न म Uddhati pfilas 1,1063
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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