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________________ १२ सवि लोक वशि, यश पुहुवि मंडल लहे तुय पय अनुचरो जागतु ० व्याकरण, ककश तर्क, आगम अतुल पट्ट्र्शण तणा, वर काव्य, नाटक, भरह, पिंगल, ग्रंथ जे वरतें घणा । श्रुत महोदधि सकल, वाणी वासि मुझ मुखि मति वरो जागतु ० 112011 118011 मोहि वहियो, कर्मि सहियो, भजी न सकं तूहनें तू दीन ऊपर, दयासागर, कृपा करि हवि मूहनें । अपराध सवि वीसारे, स्वामी, तारि मो भवसागरो जागतु ० रूपक भुजंगप्रयात छंद ॥ ( लहू सोल सादीह बत्तीस दीने इत्यादि) पूर्वछा ॥ संखे सरपुर मंडणी खंडण खंपण खोडि । दोषी दुष्ट दुअंग मां महामानी मढ़ मोडि || ८२|| कि तुं मोडिवा क्षुद्र मंद रुद्र जाण्यो कि तूं भक्त जन पालिवा प्रेम आण्यो । कि तुं सव देवेश देवे वखाण्यो कि तूं धीर थई धम महारथ तान्यो ||८३॥ किं तू हठी शठ कमठ नो हठ उतार्यो कि तें पन्नगो जलणि जल, उगाय 1 कि तूं धरण पति सौ करिउ एक हेलां कि तें तास पत्नी करी रंग रेलां || ८४ || कि तूं नारी प्रभावती नेह लगाडयो कि त म्लेच्छपति दूरि नामई नसाड्यो । कि तू पुरी प्रसेनजित् करी खेमें कि तें कुमरी प्रभावती वरी प्रेमें || ८५ || 116311
SR No.006296
Book TitleTran Prachin Gujarati Krutio
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSharlotte Crouse, Subhadraevi
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1951
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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